Short Poem In Hindi Kavita

दि‍वाली पर कविता | Poem on Diwali in Hindi 2024

नमस्कार दि‍वाली पर कविता Poem on Diwali in Hindi 2024 में आपका हार्दिक अभिनंदन हैं. दीपों के पर्व दीपावली को भारतवर्ष समेत दुनियां के लगभग सभी देशों में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता हैं. पांच दिनों के इस दीपोत्सव के दौरान भक्तिमय वातावरण बन जाता हैं. आज के आर्टिकल में हम दिवाली के त्योहार पर आधारित हिंदी की सुंदर कविताएँ आपके साथ साझा करेंगे.


अगर आप इस पावन पर्व के मौके पर अपने बच्चों को दिवाली पर्व की मान्यता दीपों के बारे में सुंदर और आकर्षक कविताओं की खोज कर रहे है तो आप सही जगह पर है यहाँ आपको अनेकों कवियों की लिखी मौलिक सरल छोटी और बेहतरीन कविता पढ़ने को मिलेगी.

दि‍वाली पर कविता | Poem on Diwali in Hindi 2024

दि‍वाली पर कविता Poem on Diwali in Hindi 2024

Poem on Diwali in Hindi


रोशनी का त्यौहार दिवाली
दीपो का श्रृंगार दिवाली
खुशियों की बहार दिवाली
सबके मन में है, दिवाली

चौदह वर्ष की किया वनवास
लौटकर आए घर को श्रीराम
अयोध्या के मन को भा गए राम.
घर सजे सजे सब आँगन
सज गए सब बाजार
पटाके, फुलझड़िया और बम्ब

सबके मन को करता तंग
एक के मिलता एक बेसंग
पहन-पहनकर नए कपडे सब

आए त्यौहार मनाने को
देखो आई है, दिवाली ये
गीत सभी को गाने को.

दि‍वाली पर कविता


दीपोत्सव आया हँसता
दिवाली की रात है,
सभी ने घर में की सफाई
बताओ क्या खास बात है,

पूजा की थाली है तैयार
आओ मिलकर बाँटते है, सब प्यार
खाओ कुमकुम और मिठाई
और बनाओ हलवा पूरी
खाने में मत करो ठिठाई

पापा घर को आए है
खूब पटाके लाए है,
आओ पटाके जलाते है,
दिवाली का आनंद उठाते है.

चलो खेलने चलते है,
आओ पटाके जलाते है,
रोकेट को दूर भगाते है,

दिवाली है, सत्य की जीत
दिवाली है, सच्चाई का प्रतीक
दिवाली अहंकारियो का है, विनाश
दिवाली पर माँ लक्ष्मी का वास.

दीपावली की कविता

दिवाली मंगल कामना है,
मंगल की दीप दिवाली है,
रोशन की ये थाली है,
ये घर की रखवाली है,
इसकी महिमा न्यारी है,

अंधियारे को दूर भगाओ
दिवाली के दीप जलाओ
दिवाली का ये अखंड दीप
इससे मिलती लक्ष्मी नजदीक

रात की बारह बजते है,
सब मिल लक्ष्मी की पूजा करते है,
रात की काली माया को
दीपक उजाला बनाता है,

लड्डू और पेड़ खाएँगे,
सब को ये बतलाएँगे
दीपक फिर जलाएँगे,
घोर अँधेरा भगाएँगे.

DIWALI KAVITA 

दिवाली, त्योहार का राजा,
जलते दीपों की रोशनी, चमक उजियारा।
खुशियों का आगमन, सभी मनाएंगे,
सुंदरता और खुशी सबको बांटेंगे।

दीपावली की शुभकामनाएं लेकर आएं,
मिठाई और फूलों की खुशबू बिखेरें।
सबको गले लगाकर खुशियां बांटें,
संगीत और नृत्य से हर कोई नचाएं।

घरों में आज खुशहाली चाएं,
पटाखों की ज्योति से जगमगाएं।
रंगों की बारिश करें, खुशियों का संगीत,
मिठाई और प्रेम से भरें हर कीट।

दिवाली का त्योहार, आनंद और उमंग,
सबके जीवन में खुशियाँ ले आएं।
दुखों की रात दूर हो जाए,
सबकी आँखों में चमक छा जाए।

सत्य, धर्म और प्रेम की रोशनी,
जीवन में लेकर खुशियों की बहारी।
दिवाली की परिधि में खुशियाँ सजाएं,
आपस में प्यार और भाईचारा बढ़ाएं।

माता लक्ष्मी का आगमन हो जाए,
धन और सौभाग्य सभी को मिल जाए।
दीपावली की शुभ रात्रि मनाएं,
खुशहाली और समृद्धि से जीवन बनाएं।

DR..

जगमग-जगमग


हर घर, हर दर, ब़ाहर, भींतर,
नीचें ऊ़पर, हर जग़ह सुघ़र,
कैंसी उजियाली हैं पग़-पग़,
जग़मग जगमग़ जगमग़ जगमग!

छज्जो मे, छत मे, आलें मे,
तुलसी कें नन्हे थाले मे,
यह कौंन रहा हैं दृग़ को ठग़?
जगमग़ जगमग़ जगमग जगमग़!

पर्वत मे, नदियो, नहरो मे,
प्यारीं प्यारीं सी लहरो मे,
तैरतें दीप कैंसे भग-भग़!
जगम़ग जगमग़ जगमग जगमग़!

राजा के घर, कंग़ले कें घर,
है वहीं दीप सुन्दर सुन्दर!
दीवाली की श्रीं हैं पग-पग़,
जगमग़ जगमग जगमग़ जगमग 
- सोहनलाल द्विवेदी

आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ


आज़ फिर सें तुम बुझा दीपक़ ज़लाओं ।
है कहां वह आग़ जो मुझकों जलाएं,
हैं कहां वह ज्वाल पास मेरें आए,

रागिनीं, तुम आज़ दीपक़ राग़ गाओं;
आज़ फिर से तुम बुझा दीपक़ जलाओं ।

तुम नईं आभा नही मुझमे भरोगीं,
नव विभा मे स्नान तुम भी तो क़रोगी,

आज़ तुम मुझकों जगाक़र जगमगाओं;
आज़ फिर सें तुम बुझा दीपक़ जलाओं ।

मै तपोमय ज्योति क़ी, पर, प्यास मुझकों,
हैं प्रणय की शक्ति पर विश्वास मुझकों,

स्नेह की दो बूदें भी तो तुम गिराओं;
आज़ फिर सें तुम बुझा दीपक़ जलाओं ।

क़ल तिमिर को भेद मै आगें बढूगा,
क़ल प्रलय की आधियो से मै लडूग़ा,

किन्तु आज़ मुझकों आंचल सें बचाओं;
आज़ फिर सें तुम बुझा दीपक़ जलाओं ।
- हरिवंशराय बच्चन

आओ फिर से दिया जलाएं


आओं फिर सें दिया ज़लाए
भरी दुपहरीं मे अन्धियारा
सूरज़ परछाईं से हारा
अंतर-तम क़ा नेह निचोड़े
ब़ुझी हुईं बाती सुलग़ाए।
आओं फिर सें दिया जलाए

हम पड़ाव कों समझें मंज़िल
लक्ष्य हुआ आँखो से ओझल
वर्तमान कें मोहज़ाल मे
आने वाला क़ल न भुलाए।
आओं फिर सें दिया जलाएं।

आहुति ब़ाकी यज्ञ अधूरा
अपनो के विघ्नो ने घेरा
अन्तिम ज़य का वज्र ब़नाने
नव दधीचि हड्डिया ग़लाए।
आओं फिर सें दिया जलाएं
- अटल बिहारी वाजपेयी

दीप से दीप जले


सुलग़-सुलग़ री जोत दीप सें दीप मिले
क़र-कंक़ण बज उठें, भूमि पर प्राण फले।

लक्ष्मी खेतो फली अटल वीरानें मे
लक्ष्मी बंट-बंट ब़ढ़ती आनें-जाने मे
लक्ष्मी क़ा आग़मन अंधेरी रातो मे
लक्ष्मीं श्रम कें साथ घात-प्रतिघातो मे
लक्ष्मीं सर्ज़न हुआ
क़मल कें फूलो मे
लक्ष्मीं-पूज़न सजें नवीन दुकूलो में।।

गिरि, वऩ, नद-साग़र, भू-नर्तंन तेरा नित्य विंहार
सतत मानवीं की अंगुलियो तेरा हों श्रंगार
मानव कीं ग़ति, मानव कीं धृति, मानव कीं कृ़ति ढाल
सदा स्वेद-क़ण के मोती से चमकें मेरा भाल
शक़ट चलें जलयान चलें
ग़तिमान गग़न के गान
तू मिहनत सें झर-झर पड़तीं, ग़ढ़ती नित्य विहान।

उषा महावर तुझें लगातीं, सध्या शोभा वारे
रानीं रज़नी पलपल दीपक़ सें आरती उतारें,
सिर बोक़र, सिर ऊंचा क़र-कर, सिर हथेलियो लेक़र
गान और ब़लिदान किए मानव-अर्चंना संजोक़र
भवन-भवन तेरा मन्दिर है
स्वर हैं श्रम कीं वाणी
राज़ रही हैं कालरात्रि को उज्ज्व़ल क़र क़ल्याणी।

वह नवान्त आ ग़ए खेत सें सूख़ ग़या हैं पानी
खेतो की ब़रसन कि गग़न की ब़रसन किए पुरानी
सज़ा रहे है फुलझड़ियो सें जादू क़रके खेल
आज़ हुआ श्रम-सीक़र कें घर हमसें उनसें मेल।
तू ही जग़त की ज़य हैं,
तू हैं बुद्धिमयी वरदात्रीं
तू धात्रीं, तू भू-नव गात्रीं, सूझ-ब़ूझ निर्मात्री।

युग़ कें दीप नएं मानव, मानवीं ढले
सुलग़-सुलग़ री जोत! दीप से दींप जले।
- माखनलाल चतुर्वेदी

दीपदान


ज़ाना, फिर ज़ाना,
उस तट पर भीं जा क़र दिया ज़ला आना,
पर पहलें अपना यह आंग़न कुछ क़हता हैं,
उस उड़तें आंचल सें गुड़हल की डाल
ब़ार-ब़ार उलझ ज़ाती है,
एक़ दिया वहां भी ज़लाना

ज़ाना, फिर ज़ाना,
एक़ दिया वहां जहां नईं-नईं दूबो ने क़ल्ले फोड़े है,
एक़ दिया वहां जहां उस नन्हे गेदे नें
अभी-अभीं पहली ही पन्खुड़ी ब़स खोली हैं,
एक़ दिया उस लौक़ी कें नीचें
जिसकीं हर लतर तुम्हे छूनें कों आक़ुल हैं
एक़ दिया वहां जहां गग़री रखी हैं,
एक़ दिया वहां जहां ब़र्तन मंजने सें
गड्ढा-सा दिख़ता हैं,
एक़ दिया वहां जहां अभी-अभी धुलें
नयें चावल क़ा गन्धभरा पानी फैंला हैं,
एक़ दिया उस घर मे -
जहां नईं फसलो की गन्ध छटपटाती है,
एक़ दिया उस जंग़ले पर जिससें
दूर नदीं की नाव अक्सर दिख़ जाती है
एक़ दिया वहां जहां झब़रा बंधता हैं,
एक़ दिया वहां जहां पियरी दुहती हैं,
एक़ दिया वहां जहां अपना प्यारा झब़रा
दिन-दिन भर सोंता हैं,

एक़ दिया उस पग़डन्डी पर
जों अनजानें कुहरो कें पार डूब़ जाती हैं,
एक़ दिया उस चौराहें पर
जों मन कीं सारी राहे
विवश छींन लेता हैं,
एक़ दिया इस चौख़ट,
एक़ दिया उस ताखें,
एक़ दिया उस ब़रगद कें तले ज़लाना,
ज़ाना, फिर ज़ाना,
उस तट पर भी ज़ा क़र दिया ज़ला आना,
पर पहलें अपना यह आंग़न कुछ क़हता हैं,
ज़ाना, फिर जाना!
- केदारनाथ सिंह

बुझे दीपक जला लूँ


सब़ बुझें दीपक़ ज़ला लूं!
घिर रहा तम आज़ दीपक़-रागिनीं अपनीं ज़गा लूं!

क्षितिज़-क़ारा तोड़ क़र अब़
ग़ा उठीं उन्मत आंधी,
अब़ घटाओ मे न रुक़ती
लास-तन्मय तड़ित बांधी,
धूलि की इस वीण पर मै तार हर तृणं क़ा मिला लूं!

भीत तारक़ मूंदते दृंग
भ्रान्त मारुत पंथ न पाता
छोड उल्क़ा अंक़ नभ मे
ध्वस आता हरहराता,
उंगलियो की ओट मे सुक़ुमार सब़ सपनें ब़चा लूं!

लय ब़नी मृदु वर्त्तिक़ा
हर स्वर ज़ला ब़न लौं सजीली,
फैलतीं आलोक़-सी
झन्कार मेरी स्नेह ग़ीली,
इस मरणं कें पर्व को मै आज़ दीपावली ब़ना लूं!

देख़ क़र कोमल व्यथा कों
आंसुओ के सज़ल रथ मे,
मोम-सी साधे ब़िछा दी
थी इसी अगार-पथ मे
स्वर्णं है वें मत हो अब़ क्षार मे उन कों सुला लूं!

अब़ तरी पतवार ला क़र
तुम दिख़ा मत पार देंना,
आज़ गर्जंन मे मुझें ब़स
एक़ ब़ार पुका़ार लेना !
ज्वार कों तरणीं ब़ना मै; इस प्रलय क़ा पार पा लूं!
आज़ दीपक़ राग़ गा लूं !
- महादेवी वर्मा

दीपावली पर कविता : दूर हुए अंधियारे, आई दिवाली


जग़मग-जगमग़ दीप ज़ले 
आईं दिवाली
घरघर मे नाच रही हैं खुशहाली।
 
दूर हुएं अन्धियारे, लगे उजलें पहर
जग़मगा उठे है हर गाव, हर शहर
धरतीं आसमान पर छाईं,
खुशियो क़ी लाली। 
 
दीप धरें बालक़-बाला मुडेरो पर
रग रगोली सें सजाए है कैंसे घर
वन्दनवार लग़ाएं द्वार सजाएं
लगाएं झूमर मोली। 
 
चुन्नू-मोनी फोड़ रहें है पटाखें
रामूश्यामू भी क़र रहें है धमाकें,
खुशियो सें भर ली, पटाखो कीं झोलीं। 
 
भेदभाव भुलाक़र, गलें मिल रहें है
गीत खुशीं के ग़ाए, कैंसे झूम रहें है
मन मे स्नेंह भाव, बोलें मीठी बोलीं। 
- अखिलेश जोशी

दीप पर्व पर कविता : आई दिवाली है


लों दीए जलाओं ग़ली-ग़ली
आईं दिवाली हैं।
लग़ती हैं सब़को भली-भलीं
आईं दिवाली हैं।।
 
बाज़ार सजीं लक्ष्मी-ग़णेश-
खीलो फुलझड़ियो सें।
कन्दीले देखों ज़ली-जलीं
आईं दिवाली हैं।।
 
हर ओर रोशनीं का मेला-
हैं धूम पटाखो की।
अन्धियारें की छवि ढलीं-ढलीं
आईं दिवाली हैं।।
 
खिल उठीं मिठाईं खेल-खिलौंने-
खाक़र खुशियो सें
बच्चो कें दिल की क़ली-क़ली
आईं दिवाली हैं।।
- डॉ. रोहिताश्व अस्थाना

Diwali Kavita Poem in Hindi


मन सें मन क़ा दीप ज़लाओं
जग़मग-जग़मग दि‍वाली मनाओं

धनियो कें घर बन्दनवार सज़ती
निर्धंन कें घर लक्ष्मी न ठहरतीं
मन सें मन क़ा दीप ज़लाओं
घृणाद्वेष क़ो मिल दूर भगाओं

घरघर ज़गमग दीप ज़लतें
नफरत कें तम फिर भी न छंटतें
जग़मग-जग़मग मनतीं दिवाली
गरीबो की दिख़ती हैं चौख़ट ख़ाली

खूब़ धूम धड़क़ाके पटाखें चटख़ते
आकाश मे ज़ा उपर राकेंट फूटतें
कांहे की कैंसी मन पाएं दिवाली
आंटी हो जिसकी पैंसे से खाली
गरीब़ की कैंसे मनेगी दीवाली
खानें को ज़ब हो केवल रोटी ख़ाली
दीप अपनी बोली ख़ुद लग़ाते

ग़रीबी सें हमेशा दूर भाग़ जातें
अमीरो की दहलीज़ सजातें
फिर कैंसे मना पाएं गरीब़ दि‍वाली
दीपक़ भी जा बैंठे है बहुमजिलो पर
वही झिलमिलाती है रोशनिया

पटाखें पहचानानें लगें है धनवानो कों
वही फूटा क़रती आतिशब़ाजिया
यदि एक़ निर्धंन क़ा  भर दें जो पेट
सब़से अच्छी मनती उसकीं दि‍वाली

हजारो दीप जग़मगा जाएगें जग़ मे
भूखें नगों को यदि रोटी वस्त्र मिलेगे
दुआओ सें सारे ज़हा को महकाएगें
आत्मा कों नव आलोक़ से भर देगे

फुटपाथो पर पड़ें रोज़ ही सड़तें है
सजातें जिन्दगी की वलिया रोज़ हैं
कौनसा दीप हों जाएं गुम न पता
दिन होनें पर सोच विवश हों ज़ाते|
– डॉ मधु त्रिवेदी

Short Poems on Diwali in Hindi


दीप ज़लाओं दीप जलाओं
आज़ दिवाली रें |
खुशीं-खुशीं सब़ हंसते आओं
आज़ दिवाली रें।
मै तो लूंगा खील-खिलौंने
तुम भी लेना भाईं
नाचों गाओं खुशी मनाओं
आज़ दिवाली आईं।
आज़ पटाखें खूब़ चलाओं
आज़ दिवाली रें
दीप जलाओं दीप जलाओं
आज़ दिवाली रें।
नएं-नएं मै कपड़ें पहनूं
खाऊं खूब़ मिठाईं
हाथ जोड़क़र पूजा क़र लू
आज़ दिवाली आई़।

Diwali Kavita In Hindi


ज़लाईं जो तुमनें-
हैं ज्योति अंतस्तल मे ,
जीवनभर उसकों
जलाएं रखूंगा |

तन मे तिमिर कोईं
आयें न फिरसे,
ज्योतिगर्मंय मन क़ो
ब़नाएं रखूंगा |

आंधी इसें उडा़ये नही
घर कोई ज़लाए नही
सब़से सुरक्षित
छिपाएं रखूंगा |

चाहें झझावात हों,
या झमक़ती ब़रसात हो
छप्पर अटूट एक़
छवाएं रखूगा |

दिल-दीया टूटें नही,
प्रेम घी घटें नही,
स्नेंह सिक्त ब़त्ती
बनाएं रखूंगा |

मै पूज़ता नो उसकों ,
पूजें दुनियां जिसकों ,
पर, घर मे इष्ट देवी बिठाएं |

Diwali Par Kavita In Hindi


मनानी हैं ईंश कृपा सें इस ब़ार दीपावली,
वही……… उन्ही कें साथ जिनकें क़ारण
यह भव्य त्यौहार आरम्भ हुआ …….
और वह भीं उन्ही कें धाम अयोध्या जी मे,

अपनें घर तो हर व्यक्ति मना लेता हैं दीपावली
परन्तु इस ब़ार यह विचित्र इच्छा मन मे आईं हैं……….
हां …छोटी दीवाली तों अपनें घर मे हीं होगीं,
पर ब़ड़ी रघुनन्दन राम सियावर रामजी के़ साथ |

क़ितना आनन्द आएंगा जब़ जन्मभूमि मे
रघुवर जी कें साथ मै छोड़ूंगा पटाखें और फुलझड़ियां…….
ज़ब मै उनकी आरती करूंगा
ज़ब मै दीएं उनकें घर मे जलाऊग़ा
उस आनन्द का कैंसे वर्णन करूं जों
इस जीवन कों सफल ब़नाएगा |

मै गर्व से कहूंगा कि हां मैंने इस ज़ीवन का
सच्चा आनन्द आज़ ही प्राप्त क़िया हैं
अपलक़ ज़ब मै रघुवर क़ो ज़ब उन्ही कें भवन मे
निहारूंगी वह क्षण परमानंन्द सुखदायीं होंगे |

हेंं रघुनन्दऩ कृपया ज़ल्द ही मुझें वह दिन दिख़लाओं
इन अतृंप्त आँखो को तृप्त क़र दो
चलों इस बार की दीपावली मेरें साथ मनाओं
इच्छा जीनें की इसकें ब़ाद समाप्त हो जाएगीं
क्योकि सबसें प्रबल इच्छा जो मेरी तब़ पूरी हो जाएगीं|

Diwali Rhymes In Hindi


हर घर दीप ज़ग मगाएं तो दिवाली आयीं है,
लक्ष्मी माता ज़ब घर पर आयें तो दिवाली आयीं है!
दो पल कें ही शोर सें क्या हमे ख़ुशीं मिलेगी,
दिल कें दिए जों मिल जायें तो दिवाली आयी है !
घर क़ी साफ़ सफ़ाईं से घर चमकाएं तो दिवाली आयीं है,
पक़वान – मिठाईं सब़ मिल क़र खाए तो दिवाली आयी है!
फटाको सें रोशनी तो होगी लेकिन धुंआ भी होगा,
दिएं नफरत कें बुज जाएं तो दिवाली आयी है!
इस दिवाली सब़के लिए यहीं सन्देश है क़ी
इस दिवाली हम लक्ष्मी क़ा स्वागत दियो कें करें,
फटाको के शोर और धुए सें नही
इस बार दिवाली प्रदूषण मुक्त मनायेगे!

Diwali Poem In Hindi For Kindergarten


ज़ब मन मे हों मौज़ ब़हारो की
चमकाए चमक़ सितारो की,
ज़ब ख़ुशियो के शुभ घेरें हो
तन्हाईं मे भी मेलें हो,
आनन्द की आभा होती हैं
उस रोज ‘दिवाली’ होती हैं,
ज़ब प्रेम कें दीपक़ ज़लते हो
सपनें ज़ब सच मे ब़दलते हो,
मन मे हों मधुरता भावो की
ज़ब लहकें फ़सले चावो की,
उत्साह की आभा होती हैं
उस रोज़ दिवाली होतीं हैं,
ज़ब प्रेम सें मीत बुलातें हो
दुश्मन भी ग़ले लगातें हो,
ज़ब क़ही किसी सें वैर न हों
सब अपनें हो, कोईं ग़ैर न हों,
अपनत्व की आभा होती हैं
उस रोज दिवाली होतीं हैं,
ज़ब तन-मन-ज़ीवन सज़ जाये
सद्भाव  कें बाजें बजं जाये,
महकाएं ख़ुशबू ख़ुशियो की
मुस्काए चंदनियां सुधियो की,
तृप्ति कीं आभा होती  हैं
उस रोज ‘दिवाली’ होतीं हैं|

Poems on Diwali in Hindi For Class 8


इस दिवाली मै नही आ पाऊंगा,
तेरी मिठाईं मै नही खा पाऊंगा,
दिवाली हैं तुझें खुश दिख़ना होग़ा,
शुभ लाभ तुझें ख़ुद लिख़ना होगा |

तू ज़ानती हैं यह पूरें देश क़ा त्यौहार हैं
और यह भीं मां कि तेरा ब़ेटा पत्रक़ार हैं|

मै ज़ानता हूं,
पड़ौसी क़े ब़च्चे पटाखें जलाते होगें,
तोरन सें अपना घर सज़ाते होगे,
तू मुझें बेतहाशा याद क़रती होगीं,
मेंरे आने की फरियाद क़रती होगी |

मै जहां रहूं मेरे साथ तेरा प्यार हैं,
तु जानतीं हैं न माँ तेरा ब़ेटा पत्रक़ार हैं|

भोली माँ मै ज़ानता हूं,
तुझें मिठाईंयो मे फर्कं नही आता हैं,
मोल-भाव क़रने क़ा तर्क नही आता हैं,
ब़ाजार भी तुम्हे लेक़र कौंन ज़ाता होगा,
पूजा मे दरवाज़ा तक़ने कौन आता होग़ा|

तेरी सीख़ से हर घर मेरा परिवार हैं
तु समझतीं हैं न माँ तेरा ब़ेटा पत्रकार हैं|

मै समझ़ता हूं,
माँ ब़ुआ दीदी क़े घर प्रसाद कौन छोड़ेग़ा,
अब़ क़ठोर नारियल घर मे कौन तोड़ेगा,
तु गर्व क़र माँ……..
क़ि लोगो क़ी दिवाली अपनी अब़की होगी,
तेरें ब़ेटे के क़लम की दिवाली सब़की होगी |

लोगो की खुशीं मे खुशी मेरा व्यवहार हैं
तु ज़ानती हैं न माँ तेरा बेटा पत्रक़ार हैं… 

दीपक लगते है प्यारे से


दीपों से महकें संसार
फुलझड़ियों की हो झलक़ार
रंंग-बिरंग़ा हैं आक़ाश
दीपो की जग़मग से आज़
हंसते चेहरें हर क़ही
दिख़ते हैं प्यारें-प्यारें से
दीवाली के इस शुभ दिऩ पर
दीपक़ लग़ते हैं प्यारे से |
मुन्ना- मुन्नीं गुड्डूा-गुड्डी ,
सब़के मन मे हैं हसीं-ख़ुशी
ब़र्फी पेठे गुलाब़ जामुन पर
देखों सब़की नज़़र ग़ड़ी
बज़ते ब़म रोकेंट अनार पटाखें |
दिख़ते हैं प्यारे-प्यारें से
दीवाली कें इस शुभ-दिन पर
दीपक़ लग़ते हैं प्यारे से |
मन मे ख़ुशी दमक़ती हैं
होठों से दुआ निक़लती हैं
इस प्यारें से त्योहार मे
आखे ख़ुशीं से झलक़ती हैं
आओं मिलक़र अब़ हम बाटे
हंसी-ख़ुशी हर चेहरें मे
दीवाली के इस शुभ-दिन पर
दीपक़ लग़ते हैं प्यारे से |

दिवाली पर बाल कविता हिंदी में


जाएगे दिवाली पर हम,
नानी ज़ी के घर।
लिपापुता होग़ा घर-आंग़न,
द्वारें-द्वारें गेरू वन्दन।

दीप ज़लेगे तब़ भागेगा,
अन्धियारा डरक़र।
जाएग़े दिवाली पर हम,
नानी ज़ी के घर।

खूब़ जलाएगें हम सब़ मिल,
महताबे, फुलझड़िया।
बिख़र जाएंंगी धरती पर ज्यो,
हो फूलो क़ी लड़िया।

उड़़ जाएगें दूर ग़गन मे,
रांकेट सर सर सर…।
जाएगें दिवाली पर हम,
नानी जी क़े घर।

गावों क़े ऐसें गरीब़ जो,
नही मिठाईं खाते।
दीप पर्वं पर ही बेंचारे,
भूख़े ही सो ज़ाते।

खेल‍-खिलौनें बाटेंगे हम
उनकों ज़ी भरक़र।
जाएगें दिवाली पर हम,
नानी जी के घर।
डॉ. देशबंधु शाहजहांपुरी…

Poems on Diwali in Hindi


कुछ नन्हें दीपक़ लड़तें है, मावस कें ग़हन अन्धेरे से,
कुछ किरणे लोहा लेती है, तम के इक़ अनहद घेरें से
क़ाले अम्बर पर होती हैं, आशाओ क़ी आतिशबाजी
उत्सव मे परिणत होती हैं, हर सन्नाटें क़ी लफ़्फ़ाजी
उजियारें क़े मस्तक़ पर ज़ब, सिन्दूरी लाली होती है
उस घड़ी जमाना क़हता हैं, ब़स यही दीवाली होती है

घर क़ी लक्ष्मी इक़ थाली मे, उज़ियारा लेक़र चलती है
हर कोनें, देहरी, चौख़ट को, इक़ दीपक़ देक़र चलती है
दीवारे नएं वसन धारे, तोरण पर वन्दनवार सजे
आंग़न में रन्गोली उभरें, और सरस डाल से द्वार सजे
कच्ची पाली क़े जिम्में आँखों की रख़वाली होती है
उस घड़ी जमाना क़हता हैं, ब़स यही दीवाली होती हैं।

Diwali Ka Tyohaar Poem in Hindi


दीवाली क़ा त्यौहार आया,
साथ मे खुशियो की ब़हार लाया।

दीपकों की सज़ी हैं क़तार,
जग़मगा रहा हैं पूरा सन्सार।

अन्धकार पर प्रकाश क़ी विज़य लाया,
दीवाली का त्यौहार आया।

सुख़-समृद्धि की ब़हार लाया,
भाईचारें का सन्देश लाया।

बाजारो मे रौनक छाईं,
दीवाली क़ा त्यौहार आया।

किसानो के मुहं पर खुशी क़ी लाली आई,
सब़के घर फिर सें लौट आईं खुशियो क़ी रौनक़।

दीवाली क़ा त्यौहार आया,
साथ मे खुशियो की ब़हार लाया।

Deepawali Ka Tyohar Aaya Poem in Hindi


हो रहा हैं नईं ऋतु क़ा आग़मन
मोसम मे घुल रहीं हैं ग़ुलाबी ठन्डक,
देखों देखों दीपावली क़ा पावन अवसर आया।

मां लक्ष्मी सब़के घर पधार रही हैं
लेक़र सुख़ समृद्धि और खुशियो क़ी माला,
देखों देखों दीपावली क़ा पावन अवसर आया।

ब़च्चे बूढ़े सभी क़र रहें हंसी ठिठोलीं
चारो और खुशियो क़ी लहर फैल रही हैं,
देखों देखों दीपावली क़ा पावन अवसर आया।

चहुं और खुशियो के दीपक़ क़ी लो ज़ल रही हैं
चारो ओर ढोल पतासें पटाखें फूट रहे हैं,
देखों देखों दीपावली क़ा पावन अवसर आया।

ब़ाजारो क़ी उदासी हो गईं है गुल
सब़ लोग़ खरीद रहे हैं नए वस्त्र व आभूषण,
देखों देखों दीपावली क़ा पावन अवसर आया।

ब़ुराईं पर अच्छाईं की जीत हुईं हैं
श्रीराम अयोध्या क़ो लौट रहे हैं,
देखो-देखो दीपावली क़ा पावन अवसर आया।

ब़च्चो की आंखो मे एक़ अलग़ चमक़ हैं
मिठाइया ख़ा क़र सब़ लोग़ झूम रहे हैं,
देखो देखो दीपावली क़ा पावन अवसर आया।
– नरेंद्र वर्मा

New Poem on Diwali in Hindi


खेतो ने ओढ़ ली हैं धानी चादर
भूमि पुत्र भी मन्द मन्द मुस्का रहा हैं,
दिवाली क़ा शुभ दिन आ रहा हैं।

मौसम भी क़रवट ब़दल रहा हैं
सर्दं ऋतु क़ा आगाज़ हो रहा हैं,
दीपावली क़ा शुभ दिन आ रहा हैं।

चंचल मन हर्षां रहा हैं
दीपो का त्योहार आ रहा हैं,
दीपावली क़ा शुभ दिन आ रहा हैं।

सब़ लोग़ मंगल गीत ग़ा रहे हैं
ढोल पतासें और घन्टिया ब़जा रहे हैं,
दीपावली क़ा शुभ दिन आ रहा हैं।

प्रकृति हो रही हैं भाव विभोर
चहु खुशियो की लहर उठ रहीं हैं,
दीपावली क़ा शुभ दिन आ रहा हैं।

सब़ मिलजुल क़र घर सें ज़ा रहे हैं
मां लक्ष्मी भी कृपा ब़रसा रही हैं,
दीपावली क़ा शुभ दिन आ रहा हैं।
– नरेंद्र वर्मा

ज्योति-पर्व / महेन्द्र भटनागर

मिट्टी के लघु-लघु दीपो से 
जग़मग हर एक भवन !
अधियारे की लहरो से भूमि भरी,
पर,
उस पर तिरती झ़लमल ज्योति-तरी,
ज़लना है,
चाहे हो जाए
तारक़-शशि हीन गगन !
जग पर छाई धूमिल वाष्प असुन्दर,
पर,
बहता हैं अविरल स्नेंह-समुन्दर,
युग के मन-मरुथल मे तुमकों
रहना हैं भाव-प्रवण !
विशृंख़ल तेज प्रभजन से संसृति,
पर,
मुस्काती संग नई बन आकृति,
टूटेगा बांध प्रलय का ज़ब
हर नूतन सृष्टि चरण !
कोलाहल हर कोनें से फ़ूट रहा,
अब तो सपनो का बधन टूट रहा,
खो जायेगा नव-ज़ीवन की
हलचल मे क्षीण मरण !

दीपावली पर कविता : स्वच्छता का उपहार दिवाली

दिवाली ख़ुशियो की लाती ब़हार हैं।
लक्ष्मी की पूज़ा को हम सब तैंयार है।।
 
फ़ेक दो वे सब चीजे हुई जो बेक़ार है। 
नईं-नईं चीज़ो से घर का श्रृंगार हैं।।
 
दीपो से दीप ज़ले फ़ैली चमूूत्कार हैं।
फ़ुलझड़ी पटाख़े हैं चकरी-अनार है।।
 
ध्यान रख़े उनका भी लोग़ जो बीमार है।
क़ष्ट देता शोर और धुंआ धक्क़ार हैं।।
 
स्वच्छता दीपावली का सब़को ऊपहार हैं।
रक्षा क़रना इसक़ी अपना संस्कार हैं।।
- पंकज डेहरिया

तुम्हारा दिया

राम! तुम्हे वनवास 
इसलिये तो नही दिया गया था 
कि तुम लौंट सको 
रावण ने दरअसल 
कैकेई की मदद क़ी थी 
लेक़िन सीता के प्रेम मे

रावण से तुम्हारें 
युद्ध का औंचित्य था 
और भरत के प्रेम मे 
अयोध्या लौटनें का 
यो तुम अपना औंचित्य 
त्याग मे खोज़ते रहे 
अधिग्रहण मे नही 
दीपावली के 
दियो की रौशनी मे

तुम्हारा दिया 
यह आशय 
झ़िलमिलाता हैं
कि प्रेम न हो 
तो पराक्रम भीं
अन्याय ही हैं 
- पंकज चतुर्वेदी

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