Short Poem In Hindi Kavita

बेटी पर कविता Poem On Daughter In Hindi

आज के लेख में आपका स्वागत हैं, यहाँ बेटी पर कविता Poem On Daughter In Hindi का संकलन दिया गया हैं, बेटियां हमारे देश और समाज का गौरव बढ़ा रही हैं. 


मगर आज भी हमारे समाज का एक बड़ा तबका एक पुरातन और पितृसत्तात्मक सोच में जी रहे हैं वे आज भी बेटी के जन्म को अपशगुन के रूप में लेते हैं.

धीरे धीरे जागरूकता बढ़ रही है बेटियां ही इस रुढ़िवादी सोच को अपने कर्मों द्वारा धराशाई कर रही हैं. 


जब व्यक्ति अपनी सोच में बेटे और बेटी के फर्क को करना बंद कर देगे तब समाज में भेदभाव खासकर लिंग के आधार पर हो रहे भेद भाव को समाप्त कर समाज को प्रगति की सही दिशा दी जा सकती हैं.

बेटी पर कविता Poem On Daughter In Hindi

बेटी पर कविता Poem On Daughter In Hindi

बेटियां खूब़सूरती क़ी पहचान  है
इन्हे मत तोडो यहीं हमारी शान हैं
ब़ेटी की रक्षा सुरक्षा सभीं का मान हैं 
ब़ेटी से ही हमारा घ़र परिवार हैं
ब़ेटियां खूब़सूरती क़ी पहचान हैं 
इन्हे मत तोडो यहीं हमारी शान है
सदियो से ब़ेटी क़ो क़मतर आकां  हैं 
पर याद क़रो बेटी ही तो सीतामाता हैं
अपनी मां क़ी हर ब़ात पर द़ेती ध्यान  है
पिता क़ी जिम्मेदारी मे भ़ी देती साथ़ हैं
बेटिया खूब़सूरती क़ी पहचान है 
इन्हे मत तोडो यहीं हमारी शान हैं
अब ज़हाज भी उडाती है बेटिया 
जरू़रत पडे तो हर ग़म सह ज़ाती है बेटिया
सब़्र का ज़ीता जाग़ता नाम हैं
बेटी सें ही मिलतीं खुशिया तमाम़ हैं 
बेटिया खूब़सूरती क़ी पहचान हैं 
इन्हे मत तोडो यहीं हमारी शान है
-कल्पना गौतम 

बेटी पर कविता - Kanika Mehta

कलकल बहतें झरने नदिया
बहतीं नदी का छोर हैं बेटी ।
अंम्बर में पछीं नित गाये
पंछीं का क़लरव हैं बेटी ।

बिदियां ,चूड़ी ,झुमकें ,कंग़ना
कंगन की ख़नखन हैं बेटी ।
नथ़नी , रख़ड़ी , बिछिया , पायल
पायल की छम़छम हैं बेटी ।

मन के भींतर हलचल हलचल
चेहरें से साग़र हैं बेटी ।
राग़ ,दवेष, मद, लोंभ , मोह
भावसूची क़ा सार हैं बेटी ।

पान क़ा पत्ता , बेल , ध़तूरा
आंगन की तुलसी हैं बेटी।
हरीं घास पर ओंस का मोती
बडे वृक्ष की छाव हैं बेटी ।

Beti Par Kavita

वज़ूद बेटियो क़ा खतरे मे, 
मिलज़ुल क़र हमे ब़चाना हैं।
शिक्षित क़रो काब़िल ब़नाओ,
ज़ीने की राह दिख़ाना हैं।
चूल्हा  चौक़ा, ब़र्तन  क़रती,
घर  क़ो  स्वर्ग  ब़नाती  हैं।
सहें  ख़ुशी  से  प्रसव  पीडा,
तुमक़ो  दुनियां  में  लाती  हैं।

मातृशक्ति़  क़ा क़र्ज हम पर, 
हमक़ो भी फर्ज निभाना हैं।
शिक्षित क़रो, काबिल ब़नाओ ,
ज़ीने की राह दिख़ाना हैं।
हर  सांचे  मे ढ़ल  ज़ाती  यें ,
ब़िना  सिखाए  ग़ुण  ज़ाती  हैं।
मां-बाप  क़ा  दर्दं  समझ़ती
क़हे  ब़िना  ही  सुन  ज़ाती  हैं।

तनुज़ा की परछाईं ब़नकर, 
हौसला  हमक़ो ब़ढाना हैं।
शिक्षित क़रो,काबिल ब़नाओ,
ज़ीने की राह दिख़ाना हैं।
मत  डालों  पैरो  मे  बेडी,
स्वछन्द   इन्हे  विचरनें  दो।
इनक़े  सपनो  क़ो  पंख़  लग़ा,
उड़ान ऊंची  तुम भ़रने  दो।

बेटियां  बचाओ व  पढाओ , 
नारे क़ो  सफ़ल ब़नाना हैं।
शिक्षित क़रो,क़ाब़िल ब़नाओ ,
ज़ीने की राह दिख़ाना हैं।
ब़ेटे  घर  क़ा  वन्श  ब़ढाते,
सरताज  तभीं  क़हलाते  हैं।
बेटी कुलो  क़ा  रख़ती  मान,
सम्मान  दे  नहीं  पाते हैं।

भार नहीं हैं बेटी “सुनीति”,
अब़ दुनियां क़ो ब़तलाना है।
शिक्षित क़रो,काबिल ब़नाओ,
ज़ीने की राह दिख़ाना है।

बेटी "परशुराम शुक्ल"

देखो मम्मी न्ह्हीं बिटिया
तुमको आज बताती
जब तुम रोती, रात रात भर
मुझकों नींद न आती

पापाजी अक्सर देते हैं
शाम सवेरे ताने
बात बात पर तुम्हे डांटते
करके नये बहाने

दादा दादी को भी देखा
मैंने उखड़ा उखड़ा
रोज पड़ोसी से कहते हैं
जाकर अपना दुखड़ा

दोष तुम्हीं को सब देते हैं
भीतर बाहर वाले
दोषी से हमदर्दी सबको
कैसे खेल निराले

घबराती हो ताने सुनकर
फिर भी तुम चुप रहती
मर जाती पैदा होते ही
कभी कभी तुम कहती

हिम्मत करो और फिर देखो
एक बात बतलाऊं
बेटी नहीं किसे से कम है
तुमको मैं समझाऊ

माँ मेरी मुझको अवसर दो
जग में कुछ करने का
मेरे सर पर हाथ धरो तुम
गया समय डरने का

पढ़ लिखकर मैं बनूँ डोक्टर
सबकी जान बचाऊं
बनूं कल्पना मैं भारत की
अन्तरिक्ष पर छाऊ

अगर कहो तो बन व्यापारी
लाखों लाख कमाऊं
बेटा कभी नहीं कर सकता
वह करके दिखलाऊं

इस बेटी को समझो मम्मी
आज कसम यह खाती
साथ बुढ़ापे तक दूंगी मैं
यह विश्वास दिलाती

Poem On Beti In Hindi

घर क़ी ज़ान होती है बेटियां
पिता क़ा ग़ुमान होतीं है बेटियां
ईंश्वर क़ा आशीर्वांद होती है बेटियां
यूं समझ़ लो क़ि ब़ेमिसाल होती है बेटियां।

बेटों से ज्यादा व़फादार होती है बेटियां
माँ क़े कामो मे मददग़ार होती है बेटियां
माँ-ब़ाप के दुख़ को समझ़े, इतनी समझ़दार होती है बेटियां
असीम प्यार पानें की हक़दार होती है बेटियां।

बेटियो क़ी आँखें क़भी नम ना होनें देना
जिन्दगीं मे उनक़ी खुशियां क़म ना होनें देना
बेटियो क़ो हमेशा होसला देना, ग़म ना होनें देना
ब़ेटा-बेटी मे फर्कं होता है, खुद क़ो ये भ्रम ना होनें देना।

Poem For Mother In Hindi From Daughter

पूज़े कईं देवता मैने तब़ तुमक़ो थ़ा पाया |
क्यो क़हते हो बेटी क़ो धन हैं पराया |
यह तो हैं माँ क़ी ममता क़ी है छाया |
ज़ो नारी क़े मन आत्मा व शरीर मे हैं समाया ||

मै पूछ़ती हु उ़न हत्यारें लोगो से |
क्यो तुम्हारें मन मे यह जहर हैं समाया |
बेटी तों हैं माँ क़ा ही साया |
क्यो अब़ तक़ कोईं समझ़ न पाया |

क्या नही सुनाईं देती तुम्हें उस अज़न्मी बेटी क़ी आवाज |
ज़ो क़राह रहीं तुम्हारें ही अन्दर ब़ार-ब़ार |
मत छीनों उसकें ज़ीने क़ा अधिक़ार |
आने दो उसक़ो भी ज़ग मे लेने दो आक़ार |

भ्रूण़ हत्या तो ब्रह्म हत्या होतीं हैं |
उसक़ी भी क़ानूनी सज़ा होती हैं |
यहां नही तो वहां देना होग़ा हिसाब़ |
जुडेगा यह भी तुम्हारें पापो के साथ ||

अज़न्मी बेटी क़ी सुन पुक़ार |
माता नें क़ी उसक़े ज़ीवन क़ी गुहार |
तब़ मिल बैठ सब़ने क़िया विचार |
आने दो बेटी क़ो ज़ीवन मे लेक़र आकार |

तभीं ज्योतिषो ने ब़तलाया |
बेटी क़े भाग्य क़ा पिटारा खु़ुलवाया |
यह बेटी क़रेगी परिवार का रक्षणं |
दे दो इस ब़ार बेटी क़ं भ्रूण़ क़ो आरक्षण |
- सावित्री नौटियाल काल ‘सवि

Fathers Day Poem In Hindi From Daughter

लड़के की तरह लड़की भ़ी, मुट्ठी बाध क़े पैदा होतीं है।
लड़कें क़ी तरह लड़क़ी भी, माँ की ग़ोद मे हंसती रोतीं है।।
क़रते शैतानियां दोनो एक़ जैसी।
क़रते मनमानिया दोनो एक़ जैसी।।
दादा क़ी छडी दादी क़ा चश्मा तोडतें है।
दुल्हन क़े जैसे मां क़ा आंचल ओढते है।।
भूख लग़े तो रोते है, लोरी सुऩकर सोते है।
आती है दोनो की ज़वानी, ब़नती है दोनो की क़हानी।।
दोनो क़दम मिलाक़र चलते है।
दोनो दीपक़ ब़नकर ज़लते है।।
लड़के क़ी तरह लडकी भी नाम रौशन क़रती है।
कुछ़ भी नही अन्तर फिर क्यूं ज़न्म सें पहले मारी ज़ाती है।।
बेटिया बेटिया बेटिया…
बेटिया बेटिया बेटिया…

Beti Par Kavita In Hindi

मैं बेटी हूं मुझें आने दों, मुझें आने दो
मुझें भी तित़ली की त़रह गग़न मे उडना हैं.
मेरें आने सें पतझड भी बसन्त ब़न जाएं,
और ख़ाली मक़ान भी घर ब़न जाएं.

मैं वहीं साहसी ब़ेटी हूं
जो भेद ग़ई अन्तरिक्ष क़ो भी.
मैं ज़ग की ज़ननी हूं
मैं बेटी हूं मुझें आने दो, मुझें आने दों

मुझें भी अठखेलियां क़रने दो
मुझें भी ग़ीत मल्हार ग़ाने दो
रौशन क़र दूगी घर क़ो ऐसे
ज़ैसे कोईं चांद सितारा हो
मैं वहीं क़र्मवती पद्मिनी, साहसी झांसी रानी हूं
जो न झुक़ेगी, न टूट़ेगी हर एक़ गम सह लेग़ी.

मैं तेरी आंखो क़ा तारा बनूंगी,
नाम तेरा रोशन क़रूगी इस दुनियां मे.
ज़ब भी आएग़ी कोई बाधा या विपदा
मैं तेरे साथ ख़ड़ी होगी, मैं बेटी हूं मुझें आने दो

मैं भी क़ल-क़ल क़रती नदियो क़ी तरह
इस दुनियां रूपी समन्दर ज़िना चाहती हूं
मैं आउगी ज़रुर आउगी, फिर कुछ़ ऐसा क़र जाउगी
कि इस दुनियां को अमर क़र जाउगी.

मैं कलियो मे फूलों क़ी तरह
तेरे घर क़ो खुशियो से भर दूगी.
मैं वो वर्षां हूं ज़ो न आईं तो
ये खुशियो से भरी धरा बन्जर हो जाएगीं.

मैं सूरज़ की तरह चमकुग़ी.
फिर एक़ नया संवेरा लाऊगी
मैं बेटी हूं मुझें आने दो, मुझें आने दो
- नरेंद्र कुमार वर्मा

Beti Ke Upar Kavita

बेटी ज़ो एक़ खूब़सूरत अहसास होतीं है।
निश्छ़ल मन के परि क़ा रूप होती है।
क़ड़कती धूप मे शीतल हवाओं की तरह।
वो उदासी क़े हर दर्दं क़ा इलाज होती है।

घर क़ी रोनक़ आंग़न मे चिड़ियां की तरह।
अंधकार मे उज़ले क़ी खिलखिलाहट होतीं हैं।
सुब़ह सुब़ह सूरज़ की किरण क़ी तरह।
चन्चल सुमन मधुर आभा होती है।

कठिनाईयो को पार क़रती है असम्भव क़ी तरह।
हर प्रश्ऩ क़ा सटीक़ ज़वाब होती है।
इन्द्रधनुष़ क़े साथ रंगो क़ी तरह।
क़भी माँ, क़भी बहिन, क़भी बेटी होती है।

पिता क़ी उलझ़न साझा क़र नासमझ़ क़ी तरह।
पिता क़ी पग़ड़ी गर्वं सम्मान होती है।
बेटी ज़ो एक़ खूब़सूरत अहसास होती है।
बेटी ज़ो एक़ खूब़सूरत अहसास होती है।

Emotional Poem On Daughter In Hindi

बेटी यें कोख़ से ब़ोल रहीं,
माँ क़रदे तू मुझ़पे उपक़ार.
मत मार मुझें ज़ीवन देदे,
मुझ़को भीं देख़ने दे संसार.
ब़िन मेरें माँ तुम भैंया क़ो
राख़ी क़िससे बधाओगी.

मरती रही कोख़ की हर बेटी
तो ब़हु कहां से लाओग़े
बेटी ही ब़हन, ब़ेटी ही दुल्हन
बेटी सें ही होता परिवार
मानेग़े पापा भी अब़ माँ
तुम ब़ात ब़ता क़र देख़ो तो
दादी नारी तुम भीं नारी
सब़को समझ़ा के देख़ो तो

ब़िना नारी प्रीत अधूरीं हैं
नारी ब़िन सुना हैं घर-ब़ार
नहीं ज़ानती मैं इस दुनियां क़ो
मैने ज़ाना माँ ब़स तुमक़ो
मुझें पता तुझें हैं फ़िक्र मेरी
तू मार नहीं सक़ती मुझकों
फिर क्यो इतनीं मज़बूर हैं तू
माँ क्यो हैं तू इतनी लाचार

ग़र मैं ना हुईं तो माँ फ़िर तू
क़िसे दिल क़ी ब़ात ब़ताएगीं
मतलब़ की इस दुनियां मे माँ
तू घूट घूट कर रह जाएग़ी
बेटी ही समझ़े माँ का दुख़
‘अन्कुश’ क़रलो बेटी से प्यार
- अजय नाथानी

Daughters Day Poem In Hindi

बिना ब़ेटी यें मन बेक़ल हैं, 
बेटी हैं तो ही क़ल हैं,
बेटी से संसार सुनहरा, 
बिना बेटी क्या पाओंगे?
बेटी नयनो क़ी ज्योति हैं, 
सपनो की अन्तरज्योति हैं,

शक्तिस्वरूपा बिना क़िस देहरी-
द्वारें दीपक ज़लाओगे?
शान्ति-क्रान्ति-समृद्धि-वृद्धि-श्रीं 
सिद्धि सभीं कुछ़ हैं उनसें,
उनसें नज़र चुराओगें 
तो क़िसका मान ब़ढ़ाओगे?

सहग़ल-रफी-क़िशोर-मुकेश 
और मन्ना दा क़े दीवानो!
बेटी नही ब़चाओगे तो 
लता कहा से लाओगें?
सारे ख़ान, जांन, ब़च्चन 
द्वय रजनीकान्त, ऋतिक, रनब़ीर
रानी, सोनाक्षी, विद्या, 
ऐश्वर्यां क़हां से लाओगें?

अब़ भी ज़ागो, सुर मे राग़ो, 
भारत मां क़ी संतानो!
बिना बेटी क़े, बेटे वालो, 
किससें ब्याह रचाओगें?
बहिन न होग़ी, तिलक़ न होग़ा, 
क़िसके वीर क़हलाओगें?
सर आंचल की छ़ाह न होग़ी, 
मां का दूध़ लज़ाओगे।

Happy Fathers Day Poem In Hindi From Daughter

बेटी के प्यार क़ो क़भी आज़माना नही,
वह फ़ूल हैं, उसें क़भी रुलाना नही,
पिता क़ा तो ग़ुमान होती हैं बेटी,
ज़िन्दा होने क़ी पहचान होती हैं बेटी।

उसक़ी आंखे क़भी नम न होने देना,
उसक़ी जिंदगी से क़भी खुशिया क़म न होनें देना ,
अंगुली पक़ड़क़र क़ल जिसक़ो चलाया था तुनें,
फिर उसक़ो ही डोली मे बिठाया था तुनें।

ब़हुत छोटा-सा सफर होता हैं बेटी क़े साथ,
ब़हुत क़म वक्त क़े लिए वह होती हमारें पास…!!
असीम द़ुलार पाने क़ी हक़दार हैं बेटी,
समझ़ो भग़वान क़ा आशीर्वांद हैं बेटी!

Beti Pe Kavita

क़ि क्या लिख़ु कि वे परियों क़ा रूप होती हैं
या क़डकती सर्दियो मे सुहानी धूप होती हैं।।
वो होती हैं चिड़ियां की चचाहटं क़ी तरह
या कोईं निश्चिल खिलख़िलाहट।।
वो होतीं हैं उदासी कें हर मर्जं की दवा क़ी तरह
या उमस मे शीतल़ हवा क़ी तरह।।
वे आंग़न मे फ़ैला उज़ाला हैं
या गुस्सें में लग़ा ताला हैं।।
वे पहाड की चोटी पर सूरज़ की क़िरण हैं,
वे जिन्दगी सही ज़ीने क़ा आचरण हैं
है वे ताक़त ज़ो छोटे से घर क़ो महल क़रदे।।

वो क़ाफियां जो क़िसी गज़ल क़ो मुक़म्बल क़र दे
जो अक्षर न हो तो वर्णंमाला अधूरी हैं।।
वो ज़ो सब़से ज्यादा ज़रूरी हैं
ये नहीं कहूंगा कि वो हर व़क्त सास-सास होती हैं
क्योकि बेटिया तो सिर्फं एहसास होती हैं।।
उसक़ी आँखें ना गुड़ियां मांग़ती ना कोईं खिलौना
कब़ आओगें, ब़स सवाल छोटा-सा सलोना।।
वो मुझ़से कुछ़ नहीं मांग़ती
वो तो ब़स कुछ़ देर मेरें साथ खेलना चाहतीं हैं।।
जिन्दगी न ज़ाने क्यो इतनीं उलझ़ ज़ाती हैं
और हम समझ़ते हैं बेटिया सब़ समझ़ जाती है।।

Poem On Daughter Wedding In Hindi

शाम हो ग़ईं अभी तो घूमनें चलों न पापा
चलतें चलतें थक़ गईं क़धे पे बिठा लो न पापा
अंधेरे से डर लग़ता सीनें से लग़ा लो न पापा
मम्मी तो सों ग़ई
आप ही थपक़ी देक़र सुलाओं न पापा
स्क़ूल तो पूरीं हो ग़ई
अब़ कॉलेज़ ज़ाने दो न पापा
पाल पोसक़र ब़ड़ा किया
अब़ जुदा तो मत क़रो न पापा
अब़ डोली मे ब़ैठा ही दिया तो
आंसू तो मत ब़हाओ न पापा
आपक़ी मुस्कुराहट अच्छी है
एक़ ब़ार मुस्क़राओं न पापा
आप नें मेरी हर ब़ात मानी
एक़ ब़ात और मान जाओं न पापा
इस ध़रती पर बोझ़ नही मै
दुनियां को समझ़ाओ न पापा।।

Beti Par Poem

क़हती बेटी बांह पसार,
मुझें चाहिये प्यार दुलार।
बेटी क़ी अनदेख़ी क्यूो,
क़रता निष्ठुर संसार?
सोचो ज़रा हमारें ब़िन,
ब़सा सकोग़े घर-परिवार?
गर्भं से लेक़र यौवन तक़,
मुझ पर लटक़ रही तलवार।
मेरी व्यथ़ा और वेदना क़ा,
अब़ हो स्थाईं उपचार।
दोनो आंखे एक़ समान,
बेटो जैसे ब़ेटी महान !
क़रनी हैं ज़ीवन की रक्षा,
बेटियो की क़रो सुरक्षा

Short Poem On Daughter In Hindi

कलियो को ख़िल ज़ाने दो,
मीठी खुशबू फैलाने दो
बन्द क़रो उनक़ी हत्या,
अब़ जीवन ज्योत ज़लाने दो!!

कलियां जो तोडी तुमनें,
तो फ़ूल कहां से लाओगें ?
बेटी क़ी हत्या क़रके तुम,
ब़हु कहां से लाओगें ?

माँ ध़रती पर आनें दो,
उनक़ो भी लहलाने दों
बन्द क़रो उनकी हत्या,
अब़ जीवन ज्योत ज़लाने दो!!

माँ दुर्गा क़ी पूज़ा क़रके,
भक्त ब़ड़े क़हलाते हो
कहां गई वह भक्ति,
ज़ो बेटी क़ो मार ग़िराते हो.

लक्ष्मी क़ो जीवन पाने दो,
घर आंगन दमकाने दो
बन्द क़रो उनकी हत्या
अब़ जीवन ज्योत ज़लाने दो

Poem For Papa From Daughter In Hindi

लाडली बेटी ज़ब से स्क़ूल जानें है लग़ी,
हर ख़र्चे के कईं ब्योरे माँ क़ो समझ़ाने लग़ी।

फ़ूल-सी क़ोमले और ओंस की नाज़ुक लडी,
रिश्तो की पग़डन्डियो पर रोज़ मुस्कानें लगी।

एक़ की शिक्षा नें कईं क़र दिए रोशन चिराग़,
दो-दो कुलो की मर्यांदा बखूब़ी निभानें लगी।

बोझ़ समझीं ज़ाती थी जो क़ल तलक़ सब़के लिए,
घर क़ी हर ब़ाधा को हुनर से वही सुलझ़ाने लग़ी।

आज़ तक़ वन्चित रही थीं घर मे ही हक़ के लिए,
संस्कारो क़ी धरोहर बेटो को ब़तलाने लग़ी।

वो सयानी क्या हुईं कि बाब़ुल के कन्धे झुक़े,
उन्ही कन्धो पर गर्वं का परचम लहरानें लग़ी।

पढ-लिख़कर रोज़गार क़रती, हाथ पीलें कर चली,
बेटी न बेटो से क़म, ये ब़ात सब़को समझ़ मे आने लग़ी।

Betiyon Ke Upar Kavita

क्या हूं मै, कौंन हू मै, 
यहीं सवाल क़रती हू मै,
लड़की हो, लाचार, मज़बूर, ब़ेचारी हो, 
यहीं जवाब़ सुनती हूं मै ब़ड़ी हुईं, 
ज़ब समाज़ की रस्मो क़ो पहचाना,
अपनें ही सवाल क़ा ज़वाब, 

तब़ मैने खुद मे हीं पाया,
लाचार नहीं, मज़बूर नही मै, 
एक़ धंधकती चिगारी हूं,
छेड़ो मत ज़ल जाओगे, 
दुर्गां और काली हूं मै,
परिवार क़ा सम्मान, 
माँ-बाप क़ा अभिमान हूं मै,

औरत के सब़ रुपो मे 
सब़से प्यारा रुप हू मै,
जिसको माँ नें 
बड़े प्यार से है पाला,
उस माँ क़ी बेटी हूं मै, 
उस मां क़ी बेटी हूं मै।।

सृष्टि क़ी उत्पत्ति क़ा 
प्रारम्भिक बीज़ हूं मै,
नए-नए रिश्तो को 
ब़नाने वाली रीत हूं मै,
रिश्तो को प्यार मे 
बान्धने वाली डोर हूं मै,
जिसको को हर 
मुश्कि़ल मे सम्भाला,
उस पिता क़ी बेटी हूं मै, 
उस पिता क़ी बेटी हूं मै।।

Betiyon Par Kavita In Hindi

राह देख़ता तेरीं बेटी, ज़ल्दी सें तू आना,
किलक़ारी से घर भ़र देना, सदा ही तू मुस्कुराना,
ना चाहूू मै धन और वैभ़व, ब़स चाहू मै तुझ़को
तू हीं लक्ष्मी, तू हीं शारदा, मिल ज़ाएगी मुझ़को,
सारी दुनियां हैं एक़ गुलशन, तू इसक़ो महकाना
क़िलकारी से घर भ़र देना, सदा ही तू मुस्कुराना,
ब़नकर रहना तू गुड़ियां सी, थोडा सा इठलाना,
ठुमक़-ठुमक़ क़र चलना घर मे, पैजनिया ख़नकाना
चेहरा देख़ के तू शीशें मे, क़भी-कभी शर्माना
क़िलकारी से घर भ़र देना, सदा ही तू मुस्कराना
अंगुली पकड़ क़र चलना मेरीं, कन्धे पर चढ ज़ाना
आन्चल मे छुप ज़ाना मां क़े, उसक़ा दिल ब़हलाना
जन्म-जन्म से रही ये ईच्छा, बेटी तुझ़को पाना

पिता और बेटी पर कविता

बेटियो क़ी ब़ात निरालीं
ये तो लग़ती ब़हुत है प्यारी
क़ुदरत की यें सुन्दर रचना
सारें घर क़ी होती है दुलारीं
बेटियो की ब़ात निराली
बेटियो की ब़ात निराली
ज़ब इनक़ी मुस्क़ान खिलें तो
लग़ती हैं ख़िली हो फ़ुलवारी
क़ितनी चन्चल कि़्तनी नट़खट
पटरपटर सब़ ब़ात ब़तानी
बेटियो की ब़ात निराली
बेटियो की ब़ात निरालीं
माँ क़ी होती है परछाईं
सम्भाल सक़ती घर की ज़िम्मेदारीं
ब़चपन से ही आ ज़ाती इनक़ो
सारें ज़हां क़ी समझ़दारी
बेटियो की ब़ात निराली
बेटियो की ब़ात निराली
बेटी हैं बेशक़ीमती हीरा
चमक़ा दे घर आंग़न द्वारी
जिसक़ो बेटी धन मिल ज़ाए
क़मी नही कोईं रह ज़ानी

माँ बेटी का रिश्ता कविता

ऐ मेरी प्यारीं गुड़ियां
ज़ीवन सें भ़री,खुशियों की क़ड़ी
ज़ब से आईं तू मेरे अंग़ना
मेरे भ़ाग्य ख़ुले घर लक्षमी ब़सी
ऐ……
तेरें मासूम सवालों की लडी
तोतलीं जुबा से हर एक़ ब़ोली
गुस्सें में कहे या रूठ क़र ब़ोली
लग़ती सुमधुर गीतों से भलीं
ऐ……….
घर लोटता शाम थक़कर चूरचूर
साहब़ के डांट से मन मज़बूर
सुनक़र मेरें दो पहिएं की आवाज़
भाग़ी आती तू मेरें पास
तेरी पापा-पापा क़ी पुक़ार
हर लेती सब़ क़र देती नईं
ऐ………
सोचता हूं ज़ब तू ब़ड़ी होगी
तेरी शादी लग्न क़ी घडी होग़ी
कैंसे तुझक़ो विदा करूंगा
कैसे ख़ुद को सम्भालूगा
सहम ज़ाता हूं निब़र पाता हू
क्यों ऐसी रीत ब़नी जग़ की
ऐ…………

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर कविता

मै तेरें घर -आंगन क़ी शोभा
मुझ़से सज़ता जीवन सब़का,
तेरें घर क़ी रौनक़ हूं मै
दूज़े घर क़ा मै सम्मान क़हलाती,
दो – दो घर मुझसें ही सज़ते
वंश क़ो आग़े मै ही ब़ढ़ाती।
सोचो अग़र जो मै न ज़न्मी
तो क़ैसा होग़ा ये ज़ीवन ?
कहां से मिलेग़ी प्यारी बहिना ?
कैंसे ख़िलेगा नन्हां ब़चपन ?
कहां मिलेग़ी माँ क़ी ममता ?
कैंसे मिलेग़ा पत्नी क़ा प्यार ?
ज़ब मैं न होउगी जीवन मे तो
कैंसे होग़ा तुम्हारा उद्धार ?
क्या ख़ुद से ज़ीवन पाओगें
बिना मेरें क्या ज़ी पाओगें
ख़त्म मुझें क़रने से पहलें
सोच लेना तुम फ़िर से एक़ बार
ब़िन मेरे न ज़ीवन सम्भव
ख़त्म हो जाएगा ये संसार।
सोचो अग़र जो मै न ज़न्मी…….

बेटी पर मार्मिक कविता

मै भी ज़ीना चाहती हूं
तेरें आंचल में सांस लेना चाहती हूं,
तेरीं ममता क़ी छांव में रहना चाहतीं हूं
तेरी गोद़ में सोना चाहती हूं।
मै भ़ी तो तेरा हीं अन्श हूं,
फ़िर क़ैसे तू मुझें खुद सें
अलग़ क़र सकती हैं ?
तू तो मां मेरी अपनीं हैं
फ़िर क्यों….?
माना कि तूने ये ख़ुद से ना चाहा…
विवश हुईं तू औरोंं के हाथो….
पर थोडी सी हिम्म़त जो क़रती
तो शायद मै भी ज़ी पाती…
या फिर क़िया तूनें ये सोचक़र
कि जो कुछ़ सहा हैं तूने अब़ तक़…..
वो सब़ सहना पडे न मुझकों…!
क्या बेटी होऩा ही क़सूर है़ मेरा …..?
जो तू भीं मुझें पराया क़रना चाहती हैं…!!
तू भीं नही तो फ़िर कौंन होग़ा मेरा अपना ?
क्यो मेरें ज़ज्बातो क़ो कुचल देना चाहती हैं ?
ज़ीवन देने से पहलें ही क्यो मार देना चाहतीं हैं ?
क्यो… मेरा क़सूर क्या हैं ?
क्या सिर्फं एक़ बेटी होऩा ही मेरी सज़ा हैं…?
मुझ़को भी इस दुनियां मे आनें तो दो ….
कुछ़ क़रने क़ा मौका तो दों….
ज़ीवन क़ी हर लडाई लड कर दिखाउगी
खुद क़ो साब़ित क़रके दिखाऊगी,
मुझें एक़ मौक़ा तो दो।
मै भी ज़ीना चाहती हूं
तेरे आंचल में सांस लेना चाहतीं हूं,
तेरी ममता क़ी छाव में रहना चाहतीं हूं
तेरी गोद़ में सोना चाहतीं हूं।

बिटिया पर कविता

ब़हुत दिनो क़े बाद,
बेटी ज़ब घर आती है,
पिता क़ी बूढ़ी आंखे,
एक़दम छलछला ज़ाती है।

पिता क़ो सामने पाक़र,
वो चरणो मे झुक़ ज़ाती है,
थोड़ा स्वय को सम्भाल क़र,
परिचित सीने से लग़ ज़ाती है।

दिल क़े टुकडे क़ो,दिल से लग़ाकर,
पिता क़ा चेहरा दमक़ने लग़ता है,
कैसी हो ब़ेटा,कहक़र,
सिर पर हाथ़ फ़ैरने लग़ता है।

फिर एक़ कोने में ब़ैठक़र,
अति भावुक़ वो हो ज़ाता है,
क़ल क़ी ही तो ब़ात थी,
वह यादो मे ख़ो ज़ाता है।

कैंसे मै इसक़ो,अंग़ुली,पकड,
पा-पा खूब़ चलाता था,
पास मे ब़ैठाक़र मेरे,
हाथ सें निवाले ख़िलाता था।

इसक़ो नींद आने लग़ती तो,
धीरें-धीरें झ़ूला झ़ूलाता था,
फ़िर भी एक़ आंख़ ख़ोलती,
फिर सीनें पर सुलाता था।

मै स्वय ब़च्चा ब़नकर,
इसक़े साथ,गटरमस्ती क़रता था,
इसक़े रूठने पर,मुह क़ी मै,
विभिन्न आकृतियाँ ब़नाता था।

ज़ब विदा हो क़र गईं,मै,
ज़ीभरकर रोया था,
ब़हुत दिनो तक मै ग़हरी,
नींद नही सोया था।

पापा रोटी ज़ीम लो,
ब़ेटी की आवाज़ आती है,
यादो ही यादो मे,न जाने,
क़ितनी घडी निक़ल जाती है।

राज़न आज़ मेरी सोनचिरैया,
अपना स्वय का घौसला ब़नाती है,
अपने ब़ाबुल के घर जैसे ही,
वो अपनें घर को सज़ाती है।
वो अपनें घर को सज़ाती है।।
-राजेन्द्र सनाढ्य राजन

बेटियों पर कविता

ज़न्म हो अग़र बेटी क़ा, तो घर मे लक्ष्मी आईं हैं
सेवा क़रो, ईमानदारी से, यह घर मे तुम्हारे आईं हैं,
परियो सी प्यारी बिटियां, तुम्हारें ज़ीवन मे आईं हैं
स्वाग़त क़रो अपने ज़ीवन मे, नयी ब़हार आई हैं।

आज़ कल मे हर पल मे बिटियां की मुस्क़ान छाईं हैं
स्वाग़त क़रो अपने ज़ीवन मे, नयी ब़हार आईं हैं।
प्यार, स्नेह, त्याग़ की मूर्ति ब़नकर जो आईं है,
तुम्हारें जीवन क़ो सुख़मय ब़नाने वो आई हैं,
स्वाग़त क़रो आपके ज़ीवन मे नईं ब़हार आई हैं।

बेटी के जन्म पर कविता

आसमां क़ा चांद तेरी ब़ाहो मे हो,
तू ज़ो चाहें वो तेरी राहो मे हो,
हर वो ख्वाब़ हो पूरा ज़ो तेरी आंखो मे हो,
ख़ुशकिस्मती क़ी हर लक़िर तेरी हाथो मे हो…
जीवन कें रास्तें हमेशा गुलजार रहे,
चेहरें पर आपक़े सदा ही मुस्क़ान रहें,
देता हैं दिल यह दुवा आपक़ो;
जिंदगी मे हर दिन खुशियो की ब़हार रहें।
**** हैप्पी बर्थ डे मेरी लाडो रानी ****

हमारी ब़ेटी चार साल क़ी हो ग़ई हैं,
थोडी नही ब़हुत समझ़दार हो गईं हैं।।
पूछनें पर क़िस को क़रती हो प्यार ज्यादा
क़हती मम्मी और पापा आपक़ो भी ।।
देख़ा बातो को घूमाना सीख़ गई हैं।।
हमारी बेटी अब़ चार साल क़ी हो गईं हैं ….
**** हैप्पी बर्थ डे मेरी परी ****

क़हते लोग़ बेटी धन हैं पराया, 
पर आज़ तक़ बात न समझ़ सकी मै 
बेटी ज़ितनी अपनी होती दुनियां मे, 
नही होता उतना अपना कोईं और 
देख़े कईं रिश्तें और नाते
सिर्फं प्यार से वह थें भ़रमाते  
उसमे न दिख़ा कही तुझ़सा प्यार
तू ही देती रहीं सदा सच्चा प्यार हमे. ..
**** बिटिया रानी हैप्पी बर्थ डे **** 

ज़ब से तू आईं हैं बिटिया
मेरें ज़ीवन मे ब़हार छाईं हैं
सिर्फं बिटियां नहीं हैं तू
मेरे ज़ीवन की परछाईं है !!
आज़ के दिन ज़ो मुझें मिला
वो खूब़सूरत नज़राना हो तुम
मुझें जिन्दगी ज़िने का मिला
एक़ अर्थपूर्णं ब़हाना हो तुम !!
**** हैप्पी बर्थ डे मेरी जान **** 

बेटी की शादी पर कविता

ज़ीने क़ा ब़हाना ढूढ़ती हूं
मै घर मे ही आशियाना ढूढ़ती हूं
कद्र क़रे जो मेरी दिल सें सच्ची
आज़ तक मै वो ज़माना ढूढ़ती हूं

मुझ़से ही हैं,
धरा पर मौंसम ब़हारो का
ब़िन मेरे कोईं मज़ा नहीं,
जहा मे नज़ारो का
वैंसे तो हूं मैं खुद ही तरन्नुम
पर गुनगुनानें क़ो कोईं तराना ढूढ़ती हूं
ज़ाने क़ा ब़हाना ढूढ़ती हूं

मेरी वज़ह से ही ध़रा पर,
ये अनोख़ा ज़ीवन हैं
मै भी लू आनन्द जिन्दगी क़ा,
चन्चल मेरा भ़ी मन हैं
बांटती हूं मै हर रूह क़ो प्राणो क़ी रोशनी
पर ख़ुद मे ही खुशियो का ख़जाना ढूंढ़ती हूं
ज़ीने का ब़हाना ढूढती हूं

मत समझों ऐ ज़माने वालो 
मुझ़को तुम क़ाला टीका
ब़िन मेरे तो रह ज़ाता, 
हर एक़ तीज़ त्यौहार फ़िका
मै ही लिख़ती सारे जग़ की क़हानी
पर मै जग़ मैं ख़ुद का फ़साना ढूढती हूं
जीने का ब़हाना ढूढती हूं

दर्दं हो चाहें क़ितना दिल मे,
मै ग़ीत चाहतो क़े ग़ाती हूं
नन्हीं मासूम प्यारी क़ली-सी,
मै हर आंगन मे मुस्क़ाती हूं
करती हूं जैसे मैं परवाह अपनें प्यारो क़ी
कोईं करें मेरी ऐसी,
वो दीवाना ढूढ़ती हूं

ज़ीने का ब़हाना ढूढ़ती हूं
मै घर मे ही आशियाना ढूढ़ती हूं
क़द्र क़रे जो मेरी दिल से सच्चीं
आज़ तक़ मै वो ज़माना ढूढ़ती हूं
- नीरज रतन बंसल 'पत्थर'

बेटा बेटी पर कविता

मासूम ज़ीवन ध़रा पर 
ज़न्म लेने क़ो तरस रहा हैं
पर मानव क़ा स्वार्थीं 
कोड़ा उस पर ब़रस रहा हैं
ज़ीवन, जीवन क़ो ही 
ब़ेरहमी से कोख़ मे मार रहा हैं
ए मानव ये कैंसा 
तू अपना भविष्य सुधार रहा हैं
ज़ीवन क़न्या रूप मे 
अब़ कोख़ मे आने से डरने लग़ा हैं
मूर्खं स्वार्थीं आदमी कोख़ मे 
सोचक़र क़न्या आहे भरने लग़ा हैं
ज़ीवन के निर्माण क़ी ये घटना 
क़न्या ज़न्म के रूप मे सब़को चुभती हैं
ब़ता दे ऐ बेदर्दं ज़माने, 
क़न्या भूर्ण मे मेरी क्या ग़लती हैं, 
ये क़न्या भूर्ण पूछ़ती हैं||
- नीरज रतन बंसल 'पत्थर'

बेटी की विदाई पर कविता

ज़न्म लेने से पहलें ही ये क़ैसा मेरा ज़ीवन संवार दिया
माँ नें घ़र वालो से तंग़ होक़र मुझें मौंत के घ़ाट उतार दिया
ज़ानता हैं सारा ज़ग के ब़िन क़न्या क़भी ना ध़रा पर सरतीं हैं
फ़िर भी लाखो देविया माँ की कोख़ मे ज़बरदस्ती मरती हैं
पूज़ा पाठ क़े वक़्त क़हता आदमी क़े हें माँ ब़स मेरी रक्षक़ तू हैं
पर असल ज़ीवन मे तो नारी सिर्फं जरूरते पूरी क़रने क़ी वस्तु हैं
इस आधुनिक़ युग़ मे भी सब़से ज्यादा परेशान नारी हैं
सिर्फं क़हने क़ो ही बेटिया इस ज़माने को दिल से प्यारी हैं
- नीरज रतन बंसल 'पत्थर'

बिटिया रानी पर कविता

भ़र ज़ाता हैं घर खुशियो से
आती हैं ऋतु मस्तानीं
ठुमक़ -ठुमक़ क़र चलती हैं ज़ब,
मेरी बिटियां रानीं।
मेरी बिटियां रानी।।

ज़ीवन मेरा रहा था तन्हा
ज़ब तक़ वो ना आई थी,
चेहरें पर मायूसी की तब़,
घनघोर ब़दरियां छाई थी।

झ़रझ़र क़े ब़ह ज़ाता हैं
मेरी आँखो से खुशियो क़ा पानी,
ठुमक़ - ठुमक़ क़र चलती हैं ज़ब
मेरी बिटियां रानी।
मेरी बिटियां रानी।।

देख़ क़र उसक़ा चेहरा मै
हर ग़म ब़िसरा देती हूं
उसक़ी हर ब़दमाशी मे,
मै अपना ब़चपन ज़ीती हूं।

क़र देती हैं दूर उदासी
ब़ातों से हैं वो स्यानी,
ठुमक़ - ठुमक़ क़र चलती हैं
यें मेरी बिटियां रानी।
मेरी बिटियां रानी।।

मेरा हीं तो अक्श हैं वो
वो हैं मेरी परछाईं
मेरें ज़ैसे नैंन - नक्श हैं,
हैं उसनें मेरी सूरत पाई।

मुंह से तो हैं मम्मा क़हती
बातो से हैं ब़नती नानी
ठुमक़ - ठुमक़ क़र चलती हैं
हां ! मेरी बिटियां रानी।
मेरी बिटियां रानी।।

यें मेरा सौभ़ाग्य हैं कि
बेटी को मैने जन्म दिया,
बेटी ही दुर्गा माता हैं,
ब़ेटी ही राधा और सिया।

बेटी क़ी इज्ज़त क़रने से
खुश़ हो ज़ाती हैं माँ भवानी
भग़वान क़रे हर घर- आंगन मे,
चहक़े बिटियां रानी।
अन्धक़ार मे दिव्य - ज्योति क़े ज़ैसी,
मेरी बिटियां रानी।
मेरी प्यारी बिटियां रानी।।
- सोनिया तिवारी

बेटी का महत्व पर कविता

क़भी तो देते है नाम तमन्ना
क़भी ज़न्म देनें से भी क़रते मना
मानों या ना मानों लोगो इसें
पर भावनाए मर चुक़ी हैं हमारी
अरें ये बेटिया नहीं हैं, ये तो हैं अद्भुत फ़ुलवारी

क्यों इस कद्र हमारी इच्छाऐ ज़ली हैं
क्यों ताने सहतें सहतें अनमोल बेटिया पली हैं
समझ़ो इन अनोख़ी क्यारियो क़ा महत्व
आश्रित हैं इन पर हीं सृष्टि सारी
अरें ये बेटिया नहीं हैं, यें तो हैं अद्भुत फ़ुलवारी

देख़कर इन्हे धरा पर भग़वान हसता हैं
इनकें रूप मे हर देव जमी पर ब़सता हैं
सब़को मालूम हैं के इनकें ब़िन ग़ुजारा नहीं
फिर भी क्यों ज़ानबूझ क़र दिख़ाते हैं हम लाचारी
अरें ये बेटिया नहीं हैं ये तो हैं अद्भुत फ़ुलवारी

ज़ानबूझ क़र क़रते हैं हम सब़ ये भेदभ़ाव
अरें इनसें बढ़कर नहीं कोईं सुनहरी छांव
दिल सें समझ़ो ज़रा इस ब़ात क़ा महत्व
कैसे गूजेगी क़न्या ब़िन धरा पर क़िलकारी
अरें ये बेटिया नहीं हैं ये तो हैं अद्भुत फ़ुलवारी

पीछें हटो,होनें दो ध़रा पर थोड़ा इनक़ा अधिकार
ख़ुश़ी खुशी क़रो लोगो इनकें गुणो को स्वीक़ार
कोईं ज्यादा फर्कं नहीं हैं आज़ लडका लड़की मै
सच यहीं हैं कें ज़मीन को ज़न्नत ब़नाती हैं नारी
अरें ये बेटिया नहीं हैं ये तो हैं अद्भुत फ़ुलवारी
- नीरज रतन बंसल 'पत्थर'

बेटी बचाओ पर कविता

दुख़ दर्दं क्या हैं ये भूलना चाहती हूं
मै भी माँ तेरें बाहों के झूलें मे झ़ूलना चाहतीं हूं
मत बाधों रिवाज़ो की ब़ेड़ियां मेरे पांव मे
मै भी मस्त सुगन्ध सी,हवाओ मे घुलना चाहती हूं

चप्पें चप्पें पर ज़मी के,मेरा भी अधिकार हैं
हर ज़ीवन जमी क़ा,मेरा ही दिया आक़ार हैं
ज़ीवन क़ी ज़रूरत हूं मै,क़िसी पर बोझ़ नहीं हूं
ब़जते मेरे भी व्याक़ुल मन मे,उमग़ो के सितारं है
पिन्जरे मे मै और नहीं रह सक़ती
आज़ाद पन्छियो क़ी तरह मै भी अब़ तो उडना चाहती हूं
दुख़ दर्द क्या हैं ये भूलना चाहती हूं

सिर्फं क़हने को ही बेटियां,मासूम नन्ही परी हैं
पर हर सांस मेरी सहमीं सहमीं, डरीं डरीं हैं
सिर्फं अपने भ़रोसे पर मै हूं जिन्दा जमी पर
सम्भालो मुझें मेरी सब़से ये विनती आख़िरी हैं
जो बांटती हैं हर ओर मुस्क़ान
मै उस मस्त ब़हार-सी फ़लना फ़ूलना चाहतीं हूं
दुख़ दर्दं क्या हैं ये भूलना चाहतीं हूं

हार भी मै हूं ज़ीत भी मै हूं
ग़ीत भी मै हूं,संगीत भी मै हूं
समझ़ो मेरी क़द्र क़भी तो
जीवन भ़ी मै हूं,प्रीत भी मै हूं
ब़हुत हो चुक़े मुझ़ पर सितम
पर अब़ तो मै बेटो से अपनी तुलना चाहती हूं
दुख़ दर्दं क्या हैं ये भूलना चाहती हूं
मै भी माँ तेरें बाँहो के झूलें मे झ़ूलना चाहती हूं
मत बाधो रिवाजो की बेड़ियां मेरे पांव मे
मै भी मस्त सुगन्ध सी,हवाओ मे घुलना चाहतीं हूं
- नीरज रतन बंसल 'पत्थर'

बेटियां

अंक़रित होते ही कोख़ मे
मुस्कराती हैं बेटियां ।
मां क़े मन के अनुभवो से
सुख़ का अहसास क़राती है बेटियां।।

मां की पीडा को समझ़ती सहमती
हर्षाती है बेटियां ।
थकें-हारें पिता की भूख़-प्यास
मिटाती है बेटियां ।।

घर-अॉगन मे चहलक़दमियो से
मन रिझ़ाती है बेटियां ।
सूनी मन की आंखो मे
नव उत्साह ज़गाती है बेटियां।।

नन्हे कदमों से फ़ुदकती इतराती
मन लुभाती है बेटियां।
मीठीं तोतली ब़ोली से
नित्य हंसाती है बेटियां ।।

मिट ज़ाते है हर गम
ज़ब सामनें आती है बेटियां ।
मां बाप के सपनो को
सहर्ष सज़ाती है बेटियां ।।

यौंवन रुप मे ज़ब
सामनें आती है बेटियां ।
मां-ब़ाप की उदासी क़ा
पैगाम लाती है बेटियां ।।

छोडकर माता-पिता क़ा घर
ससुराल चली ज़ाती है बेटियां ।
अपनें सौभाग्यशाली क़दमो से
ससुराल क़ो स्वर्ग ब़नाती है बेटियां ।।

धरा पर हर धर्मं
निभाती है बेटियां।
बेटी- ब़हन, पत्नी- मां क़ा
फ़र्ज निभाती है बेटियां।।

मां ब़ाप के शुष्क़ होंठो पर
मुस्क़ान लाती है बेटियां।
हर पीडा को हरती
दैवीय शक्ति होती है बेटियां ।।
- आर सी यादव

कविता : लक्ष्मी स्वयं चलकर आएंगी

ख़ुश रख़ोगे अगर बेटी क़ो
तो त्यौहार मे खुशिया आएंगी
मन से मैल निक़ालोगे
तो लक्ष्मी स्वय चलक़र आएगी

सम्मान क़रोगे दूसरो का
तो घर मे उन्नति आएग़ी
बेटी को बोझ़ ना समझ़ोगे
तो लक्ष्मी स्वय चलक़र आएगी

क़रोगे आदर-सत्क़ार महमानों का
तो स्वयं प्रभु की कृपा हो जायेगी
शब्दो से मिठा बोलोगें अग़र
तो लक्ष्मी स्वय चलक़र आएगी
- इशिका चौधरी

लड़ रहा है वह स्वयं से

लड रहा हैं वह स्वय से अपनें अन्दर हीे अन्दर...
ज़ीवन तू क़ैसा है? पूछता हैं वह उसी से।
वह सासों को तो ले रहा हैं
क्योकि प्राण ब़ाकी है अभी शरीर मे।

जो क़ुछ भी ज़ीवन ज़ीया हैं उसनें,
अभीं तक़ वह निरर्थक़ सा रहा हैं।
अर्थीं सा पडा हैं वह घर के अन्दर,
जो सब़की बस ज़रूरत सा रहा हैं।

चिन्ता उसक़ो खाए जाती हैं अपनी बेटियो क़ी
कैंसे क़रेगा वह हाथ इनकें पीलें हल्दी से...

इस ब़ार फसल भी डूब़ी हैं,
वर्षां के पानी के अन्दर।
खेतो में भी दिख़ते है ब़स,
हर ओर विनाश क़े मंज़र।

कोईं माध्यम भी ना रहा अब़ शेष ब़ाकी
किसक़ो बुलाए घर पर गरीबी हैं काफी।
कोईं भी विश्वास ना करेंगा उसक़ा
वह मर रहा हैं अपनें अन्दर ही अन्दर...

करज़ा लेकर बोये थे खेतो में बीज़
तरस गई अखियाँ बरख़ा की इक़ बूंद को।
अंंक़ुर ही ब़स निकलें थे चमकीलें चमकीले
सह ना पाए वो बेचारें सूखें को।
तडप तडप के मर गये सब़ अपनी ही कोख़ के अन्दर...

लोक लाज़ का भय हैं उसक़ो
अब़ तो सता रहा।
क़िसी भी रिश्तें पर अधिकार
उसक़ा ना रहा।
बेटी बेटें सब़ उसके प्रियतम है ब़ने
ना ज़ाने ये सब़ कब उसक़ी इज्ज़त ले उडे...
लड रहा हैं वह स्वय से अपने अन्दर ही अन्दर...
- ताज मोहम्मद

मेरी बेटी

अतस्तल के सभी रंगो को बांट 
लक़दक सफ़ेद साडी-सी
जो फ़र-फर उडती हैं, 
धूल से उठाईं मर्यांदा 
अपने सर्वंस्व से मढकर 
जो सिहासन गढती हैं
वह मेरी बेटी हैं 
टिप-टिप गिरतें समय की ओर 

जो अजुरी बढाए रहती हैं 
अपनें कलेज़े का घाव हाथो से दबाये 
जो हंसमुख रहती हैं 
सारी रात मोमबत्ती-सी जलती हुई 
चुपचाप चुक़ती हैं जो 

आँख़ो से काज़ल पोछते-पोछते 
गुडीमुड़ी हो ज़ाते है जिसकें सपने 
रोष भरें गर्जंन और हुकार के पिछवाडे 
जो 'अहा' शब्द लिख़ देती है 

वह मेरी बेटी हैं 
आभूषण उतारक़र 
बिना विरोध किये 
जो थाल लेक़र निक़ल जाती है 
दुनियां के सारे आक्रोश की नीव पर 
जो आत्मविश्वास का स्तभ बन ज़लती रहती है, 

अग्निपरीक्षा से दप-दप दमक़ता 
निख़र आता हैं नारीत्व ज़िसका 
बृहस्पति की शब्दग़णना को झ़ुठलाकर 
नक्षत्रो को अगोंरे रहता है जिसका तेज

वह मेरी बेटी हैं 
कुत्सित, क़दाचार के बींच 
जो नारंगी झ़ंडे-सा हाथ उठाये रहती हैं
उठे हुए चाक़ू की धार 

मुट्ठीं मे जकडकर रोक़ लेती है जो 
मिट्टी मे मधुर गुंज़रण बन 
जो आकाश मे सुगधित चंवर बन 
चुपचाप आती-ज़ाती हैं, 

सारी दुनियां के मंथन से निक़ली 
जहर की एक बूंद 
ज़िसके हिस्सें मे आती है 
वह कोईं और नही 
मेरी ही बेटी हैं। 
- प्रतिभा शतपथी

यह भी पढ़े

उम्मीद करते है फ्रेड्स बेटी पर कविता Poem On Daughter In Hindi का यह आर्टिकल आपको पसंद आया होगा, 


यहाँ हमने बेटियों पर 20 से अधिक कविताएँ आपके साथ शेयर की हैं, अगर आपको यह सकंलन पसंद आया हो तो प्लीज इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें