छाता पर कविता | Poem On Umbrella in Hindi: हम सभी ने बचपन से लेकर आज तक बरसात और धूप से बचने के लिए छतरी जरुर ओढ़ी होगी. पहले के जमाने में काले रंग का छाता हुआ करता था, मगर आजकल विभिन्न रंग बिरंगे अम्ब्रेला बाजारों में उपलब्ध हैं. आज के आर्टिकल में हम छाता पर कुछ हिंदी कविताएँ लेकर आए हैं. उम्मीद करते हैं ये आपको पसंद आएगी.
छाता पर कविता | Poem On Umbrella in Hindi
मेरा छाता
तेज धूप से यह लड़ जाता
वर्षा के आगे अड़ जाता
काम बड़ा यह मेरे आता
मेरा छाता मेरा छाता
बादल आँख अगर दिखाते
अम्मा इसे साथ कर देती
बूँदें पटक पटक सिर इस पर
आखिर समझौता कर लेती
नहीं चोट से यह घबराता
मेरा छाता मेरा छाता
करके बंद हाथ में ले लो
बेंत सरीखा बन जाता है
करो ईशारा तो पलभर में
पर फैलाता, तन जाता हैं
सेवा से यह जी न चुराता
मेरा छाता मेरा छाता
ऐसा अच्छा साथी पाकर
किसका मन न भला सुख पाए
इसीलिए इसका रंग काला
जिससे नजर नहीं लग जाए
खो न कहीं यह जाय, विधाता
मेरा छाता मेरा छाता
रंग बिरंगा मेरा छाता
रंग बिरंगा मेरा छाता
तेज धूप से मुझे बचाता
जब गरजें घनघोर घटाएं
मैं इसके नीचे छिप जाता
रिमझिम रिमझिम बारिश का
संग इसके आनन्द उठाता
जब चलती है तेज हवाएं
यह मुझको बहुत सताता
उल्टा होकर यह नटखट
खूब दौड़ मुझसे लगवाता
जब दिखती बूढी अम्मा
नीचे अपने उन्हें बुलाता
वे देती आशीष मुझे
संग उनके मैं बतियाता
कहती, बेटा बड़े भले तुम
लम्बी उम्र करे विधाता
छतरी पर कविता - Short Poem On Umbrella In Hindi Language
क़ड़क़ती धूप से मै ब़चाता
तेज बारिश मे मै काम आता
हरा गुलाबी लाल़ नीला काला
हर रंग़ मे मै हूंं मिल जाता
मुझ़को बंद क़रके छड़ी ब़ना लो
खुल जाऊ तो काम लग़ा लो
इतना भी क्या सोच रहे हो
मै हूं तुम्हारा अपना छाता
– अनुष्का सूरी
इम्पोर्टेंट छोटा छाता कविता
ले कर जाता मैं छाता पर भीग के आता
बारिश से था ऐसा प्यारा नाता
छीकते छीकते मैं बडो से डांट भी खाता
छूटता नहीं पर बारिश से ये मेरा नाता
छोटा सा था वो मेरा इम्पोर्टेंट छाता
या तुम आती उसके नीचे या मैं आता
तुम भी भीगती मैं भी भीगता भीगता छाता
हमें देखकर मुस्कराता जाता
वो बारिश भी याद है मुझको और वो छाता
क्या तुम्हे भी वक्त वो प्यारा याद आता?
- Anuup Kamal Agrawal
Hindi Poem on Umbrella
धूप बरसात से बचाता है
वर्षा के बूंदों को थामकर
खूब चोर मचाता है
भीगने का भी कोई डर नहीं रहता
सिर के ऊपर एक आशियाना बनाता है
घर के अंदर बंद हो जाता हैं
घर के बाहर खुल जाता है
बरसात धुप से हमें बचाने वाला
रंग बिरंगा साथी छाता कहलाता है
- प्रकाश कुमार यादव
छोटी कविता मैं छाता हूँ
मैं छाता हूँ
तेरे बहुत काम आता हूँ
गर्मियों में खुद धूप से
काला हो जाता हूँ
मगर तुझे छाँव देता हूँ
बारिश में खुद गीला हो जाता हूँ
मगर तुझे भीगने से बचाता हूँ
हाँ मैं मामूली सा छाता हूँ
मगर तेरे बहुत काम आता हूँ
हाँ मैं छाता हूँ
कुछ पल ही सही
मगर रोज कुछ देर
मैं तेरा छत बन जाता हूँ
- अभी
छाता प्रेम कविता
ले जाओ तुम अपना वो छाता
जो बारिश की कुछ बुँदे आ जाने पर दिया
ले जाओ तुम वो अपनी मीठी यादे
जो दूर हो जाने पर आँखों को नम किया
हम अकेले भले थे इस तन्हाई से भले थे
क्यूँ रातों की नीदों को कम किया
तेरी चाहत में अब हम खुद को अकेला पाते है
क्यों मुझे तुमने अपने इतने करीब किया
अब भूलना आसान नहीं हो रहा
क्यों मुझे तुमने इतना प्यार किया
ले जाओ तुम अपना वो छाता
जो बारिशो की कुछ बूंदे आ जाने पर दिया
ले जाओ तुम वो अपनी मीठी यादें
जो दूर हो जाने पर आँखों को नम किया
शायरी
छाता बारिश नही रोक सकता
परन्तु बारिश में खड़े रहने का
हौसला अवश्य देता है
उसी तरह आत्मविश्वास
सफलता की गारंटी तो नहीं देता
परन्तु सफलता के लिए
संघर्ष करने की प्रेरणा अवश्य देता है.
छतरी का संदेश
धूप से भी बचाता
बारिश से भी बचाता
बिना परेशान किये अपना काम
चुपचाप है करता वह है छाता
देता संदेश हमें
सुख हो या दुःख सहन
करो एक समान
सुख में ना इतराओ दुःख में न रोवो
रहो चिंताओं से मुक्त
रखो अपने स्वास्थ्य का ख्याल
- पुष्पा
एक छाता
एक छाता सब कुछ नहीं कर सकता
बारिश झेल लेता है
मगर ओले नहीं
धूप से बचा लेता है
मगर हवा से नहीं
वो सब नहीं कर सकता
ओले गिरते है तब
फट जाता है
हवा चलती है जब उड़ जाता है
वो अकेला सब नहीं कर सकता
हाँ अगर कोई पकड़ के चले
तो जरुर लड़ाई लड़ लेता है
आड़े तिरछे होकर बचा लेता है
हवा के रुख के साथ भी
वो उस हाथ के साथ रहता है
मगर अकेला छाता
सब नहीं कर सकता
वो अकेला सब नहीं कर सकता
- Mayur Nikte
छतरी पर कविता
छाते से बाहर ढेर सारी धूप थी
छाता-भर धूप सिर पर आने से रुक गई थी
तेज़ हवा को छाता
अपने-भर रोक पाता था
बारिश में इतने सारे छाते थे
कि लगता था कि लोग घर बैठे हैं
और छाते ही सड़क पर चल रहे हैं
अगर धूप, तेज़ हवा और बारिश न हो
तो किसी को याद नहीं रहता कि
छाते कहाँ दुबके पड़े हैं
- अशोक वाजपेयी
छाता (शहंशाह आलम)
ब़ारिश के बाद छातें मे
थोडा पानी बचा रह ग़या हैं
यह बचा पानीं उन स्त्रियो की देह़ पर
बचा पानी हैं
जिन्होने जीभर ऩहाया हैं
आक़ाश से झ़र-झ़र झ़रते पानी मे
जैंसे नहाती है यक्षिणियां
पृथ्वीं पर नया रूपक़ गढते
अन्तरिक्ष के लिये अपनी देह पर पानी ब़चाते
रहने दूंगा मै भी
छातें का पानी छातें मे
स्त्रियो यक्षिणियो के
क़ठिन दिनो के लिये।
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