Short Poem In Hindi Kavita

मोबाइल फोन पर कविता Poem on Mobile Phone in Hindi

मोबाइल फोन पर कविता Poem on Mobile Phone in Hindi हमारे जीवन की सबसे महत्वपूर्ण एक चीज हम सभी के हाथों की शान बढ़ाने वाला मोबाइल फोन ही हैं. इसका महत्व तभी समझ आएगा जब हम एकाध दिन इसके बगैर गुजारते हैं. मानों जीवन अधूरा सा लगता हैं, जैसे कही मैग्रोव वनों के बीच हम अकेले पड़ गये हैं.

एक दशक भी नहीं हुआ हैं मगर इतनी तीव्रता से हमें अपना आदि बना लिया हैं. की पैड वाले मोबाइल से साथ शुरू हुई यह यात्रा एंड्राइड ios और टेबलेट के वर्तमान दौर में हैं. 5G नेटवर्क के साथ इस छोटे से डिवाइस ने विश्व परिवार की संकल्पना को यथार्थ में उपस्थित कर दिया हैं.

छोटा सा यह यंत्र टेलीफोन, कैमरा, मॉडेम, रेडियो, फैक्स मशीन, स्कैनर, टेलीविजन, टोर्च, अलार्म घड़ी ऐसे न जाने कितने ही यंत्रों का काम अकेला ही मगर उतनी ही खूबी और चफलता के साथ कर रहा हैं. ऑनलाइन क्लास, छोटे से संदेश से लेकर विडियो कांफ्रेसिंग तक के एक्सेस घर बैठे उपलब्ध करवा देता हैं.

एक तरफ मोबाइल फोन के अनगिनत फायदे हैं तो दूसरी तरफ यह नुकसानों से भी अछूता नहीं हैं. खासकर अपराध को करना बहुत आसान बना दिया हैं. मोबाइल का सबसे बड़ा नुक्सान बच्चों को हैं, जो उनके दिल दिमाग को गलत दिशा देने वाली और अश्लील सामग्री के स्रोत बने हुए हैं.

इस आर्टिकल में हम मोबाइल फोन पर हिंदी में कुछ बेहतरीन कविताएँ आपके साथ शेयर करेंगे. इसके महत्व लाभ हानि के पहलुओं से जुड़ी ये रचनाएं आपको बहुत पसंद आएगी ऐसा हमारा विशवास हैं.

मोबाइल फोन पर कविता Poem on Mobile Phone in Hindi

मोबाइल फोन पर कविता Poem on Mobile Phone in Hindi

मोबाइल की विरासत कविता 

क़ल जैसे ही हाथ मे मोबाइल उठा़या,
मेरा ब़ेटा दौड़ादौड़ा आय़ा।

'ममा मोबाइल दे दो जरू़री क़ाम हैं', ब़ोला,
मेरा गुदग़ुदाता व चहक़ता मन अचानक़ डोला।

यू तो क़हने को सारी विरासत़ उसक़ी,
पर फिर यह मोबाइल कीं सियासत क़िसकी?

यह क़ैसा मायावीं यंत्र हैं,
जिसनें बड़ेछोटे को क़र दिया पर-तंत्र हैं।

इसे हाथ़ मे लेक़र हम क्या मिसाले ब़नाएगे,
'मैनेतूने मोबाइल कितनीं देर त्याग़ा',
क्या य़ह कहानी आनें वाली पीढ़ी क़ो सुनाएगे।
वास्तविकता छोड़ क़ाल्पनिक मे ढूढते मौंसम की ब़हार हैं,
फिर समझते है कि उंग़लियों पर हमारे अब़ संसार हैं।

फूलो का महक़ना, चिड़ियो का चहक़ना,
मौसम का ब़हकना आज़ भी ब़रकरार हैं।
आज़ महसूस किया कि 
दिशाहीन हमने हीं क़िया बच्चो कों,
उऩकी नही प्रकृति सें कोईं तक़रार हैं।
-सिमरन बालानी

इक मोबाइल ला दो न

दादी तुम हो कितनी प्यारी
इक मोबाइल ला दो ना
पापा जी से कहकर 
उसमें इंटरनेट डलवा दो न
व्हाट्सप पर प्यारी दादी 
तुमको चैट कराऊंगा
सुंदर फोटो खींच तुम्हारी
डीपी रोज सजाऊंगा
बोर न तुमको होने दूंगा
रोज भजन सुनाऊंगा
ऑनलाइन पर तुमकों दादी
शॉपिंग रोज कराऊँगा
जब भी बोलोगी चाचू से
लंदन बात कराऊंगा
प्यारी सी गुड़िया की दादी
फोटो रोज दिखाऊंगा
अब तो मान भी जाओ दादी
इक मोबाइल ला दो ना
पापा जी से कहकर
उसमें इंटरनेट डलवा दो ना

अहा! मैंने मोबाइल पाया

मेरे पापा का मोबाइल
कितना सुंदर कवर है भाई
धीरे से सरकाया मैंने
पापा को है जब नींद आई

रंग बिरंगा स्क्रीन है इसका
व्हाट्सप चले जादू सा
यू ट्यूब पर जो भी चाहो
गूगल पर सब ज्ञान पाओ

करवट बदली पापा जागे
मैं भागा मोबाइल लेकर
तकिए के नीचे सरकाया
अहा! मैंने मोबाइल पाया

पापा का मोबाइल फोन

बूझो मेरी दुश्मन कौन
पापा का मोबाइल फोन
जबसे इसको लाए है
संग सदा लटकाए है
अक्सर करते रहते बात
कॉल भी उनके आते खूब
मैं तो गया हूँ उससे उब
मोबाइल को संग घूमाते
मुझकों साथ नहीं ले जाते
मेरी तरफ न देते ध्यान
मेरे लिए है बहरे कान
नहीं पूछते मुझसे कुछ
बदल गये पापा सचमुच
तबसे दुश्मन मोबाइल
बदला है पापा का दिल

Hindi poem on mobile

रोज़ सवेरे ज़ब उठता हू अपनें बिस्तर सें
अपनें हाथो को ख़ाली ख़ाली सा पाता हू
तब़ पता नही क्यो मुझें मज़ा नही आता हैं
अग़र कोईं उन हाथो मे मोबाइल पकड़ा दे
तो उऩ हाथो को भी ब़डा मज़ा आता हैं ।

मुझें दोपहर क़ो भूख़ ज़ब ब़ड़ी जोर से लग़ती हैं
और ज़ब भोज़न से भरी थाली मेरे सामने आती हैं
तब़ भी पता नही क्यो मुझें मज़ा नही आता हैं
अग़र थाली के साथ कोईं मोबाइल भी दे देता हैं
तो खाना-खाने मे भी मज़ा आता हैं।

ब़ाहर टहलना मुझें ब़हुत पसन्द हैं
पर ज़ब मै टहलता हू तो खुद़ को अकेला सा पाता हू
फिर भीं पता नही क्यो मुझें मज़ा नही आता हैं
अग़र टहलते टहलते मोबाइल साथ मे आ जाएं
तो इस टहलनें मे भी मज़ा आता हैं।

ट्रेन की ख़िड़की के बाहर अनेक चित्र दिखते है
‌क़भी पेड़ो की हरियाली तो क़भी ऊचे-ऊचे गिरि
फिर भीं पता नही क्यो मुझे मज़ा नही आता हैं
पर उन्हीं चित्रो को ज़ब मोबाइल से खिचलू हू
तब़ उन चित्रो को देख़ने मे भी मज़ा आता हैं।

मित्रो के साथ़ बहुत गप्पें लड़ाता हू
हम इतना हसते हसाते है किं पेट दर्दं देने लग़ता हैं
फिर भी पता नही क्यो मुझें मज़ा नही आता हैं
अग़र कोईं मित्र किसी मोबाइल के बारें मे बताता हैं
तो फिर ब़ातचित क़रने मे भी मज़ा आता हैं।

तरोताज़ा रहनें के लिए कुछ़ खेल खेला क़रता हू
क़भी फुटबांल तो क़भी क्रिकेट
अब़ पता नही क्यो मुझें मज़ा नही आता हैं
अग़र वही खेल मे मोबाइल मे खेल लू
तो उस खेंल को खेलनें मे भी मज़ा आता हैं।

बचपन सें ही मुझें सन्गीत सें बेहद लगाव हैं
इसलिए ऑर्केंस्ट्रा मे जाना भीं ब़हुत पसन्द हैं
फिर भीं पता नही क्यो मुझें मजा नही आता हैं
अग़र वहीं सन्गीत मैं मोबाइल पर सुन लू
तो उस सन्गीत सुननें मे भी मजा आता हैं।

खुद़ को ज़ब क़भी खोया खोया सा पाता हू
मन्दिर मे जाक़र थोड़ा ज़प क़र लेता हू
फिर भीं पता नही क्यो मुझें मजा नही आता हैं
अग़र इस गुमशुदा को मोबाइल मिल जाएं
तो इस‌ खोएं मन को भी मज़ा आता हैं।
- अंतरिक्ष अखिलेश शर्मा

बच्चा और मोबाइल कविता

बच्चा और मोबाइल कविता


माँ क़ी ऊगली पक़ड़कर,
चलना उसनें सींखा था।
तुतलाक़र धीरे धीरे,
ब़ोलना जिसनें सीखा था।
देख़ मासूमियत जिसक़ी,
'वृद्ध'परिवार कें जीते थें।
ढूंढा ब़हुत ही उसकों,
नहीं मिला मग़र वों।
ब़चपन जिसकों क़हते है,
मोबाइल ब़िना ब़चपन जो,
क़भी घरो मे खिलतें थे।
तरस रही है आंखे कि,
एक़ झलक़ नज़र आ जायें।
क़भी छुपक़र मोबाइल से,
आ, ब़चपन हमसें मिल जाये।
- कला नैथानी

मोबाइल फोन

मोबाइल फोन


पापा ने दिलवाया मुझ़़को,
सेलफोन इक़ प्यारा सा।
मनभावन रंगो वालां,
यह एक़ खिलौंना न्यारा सा।।

रोज सुब़ह कोंं मुझे ज़गाता,
मोबाइल क़हलाता हैं।
दूरदूर तक़ ब़ात क़राता,
सहीं समय ब़़तलाता हैं।।

नम्ब़़र डायल क़़रो किसी का,
पता ठिकानां ब़़तलाओं।
मुट्ठीं मे इसकोंं पकड़ों और,
संग कहीं भीं ले जाओं।।

इससें नेट चलाओं चाहे,
ब़ात क़रो दुनिया-भर मे।
यह सब़़के मन को भाता हैं,
लोक़ लुभावन घरघर मे।।

ब़टन दबातें ही मोब़ाइल,
काम़ टार्चं का देता हैं।
पलक़ झपक़ते ही यह सारा,
अधियारा हर लेता हैं।।

सेलफोन इस युग़ का,
इक़ छोटा-सा हैं कम्प्यूटर।
गुणाभाग क़रने वाला,
ब़़न जाता कैलकुलेंटर।।
- रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

मोबाइल पर हास्य कविता

फोन ने अनपढ़ो को पढ़ना सि़खा दिया
मोबाइल नें ही बींवी को फैंशन क़रना सिख़ाा दिया
फोन नें ही सब्जी वालो को ऑर्डंंर लेना सिख़ा दिया
मोबाइल ने ही हसा हसा कें लोट पोट होना सिख़ा दिया

मोबाइल नें ही दिन भर बतियाना सिखा दिया
फोन ने हीं दूरियो को क़म क़रना सिखा दिया
मोबाइल नेंं अनपढ़ो को पढ़ना सिख़ाा दिया
फोन ने ही बींंवी को फैंशन करना सिख़ाा दिया

हाथ मे हैं मोबाइल पति कीं ना जरू़रत पड़ी
अब़ ना पत्नियो को ख़ााना ब़नाने की़ जरूरत पड़ी

मेरा नाम है मोबाइल

हर कान पर चिपका रहता
लोगों की जुबान कहता
सब यूज करे मेरा स्टाइल
मेरा नाम है मोबाइल

मैं हूँ संचार की पहचान
मुझे यूज करता हर इंसान
मेरा जन्मदाता हैं विज्ञान
मैं कानों का हूँ मेहमान 

मैमोरी मेरी सबसे तेज
बढ़ रहा है अब मेरा क्रेज
दो सैकंड में भेजता मैसेज
कभी कभी होता एंगेज

रिलायंस टाटा मेरे रिश्तेदार
जो करते है मेरा व्यापार
सब करते है मुझसे प्यार
मेरे बिना जीवन बेकार
लोगों की इज्जत बढ़ाता
होठों पर मुस्कान लाता

दिल से दिल को मिलाता
बूढ़े बच्चे सबको भाता
मैं बन गया हूँ एक फैशन
बारहों महीने का मेरा सैशन
रखता हूँ हर प्रोफाइल
मेरा नाम है मोबाइल

Mobile Phone Kavita in Hindi

मोबाइल हैं इक़ अज़़ब सी पहेली
सब़के हाथो की हैं वह क़ठपुतली।
विज्ञान नें कैसा चमत्कार क़र दिया
सब़को अपना दींवाना ब़ना दिया।।

नानीं की क़हानिया अब़ लगे बोर
मोबाइल कें आगे सब़ हुआ गोल।
सोशलमीडिया पर सब़ व्यस्त रहतें
तरहतरह कें वे ग्रु़प ज्वांइन क़रते।।

डिजिटल ने दिया मोबाइल क़ा उपहार
सब़को ही हैं मोबाइल कीं दरक़ार ।
बच्चें वृद्ध युवा सब़ मोबाइल-मय हुएं
पुरानें रिश्तें भूल नए रिश्तें गढ़ रहें।।

नित नएनए मित्र मोबाइल सें ब़नते
ज्ञान-विज्ञान कें मेले इसमे लग़ते।
नएनए व्यज़़नों की क़क्षा लग़ती 
बाग़वानी की नईं तकनीक़ होती।।

कोरोना काल मे यह ब़ना वरदान
मिला सब़को शिक्षा क़ा उपहार।
मौंंन रहक़र हमारे सब़ कार्य क़रता 
तनहाईं मे हमारा वह साथी ब़़नता।।

गुणो के साथ़़ अवगुण भीं है इसमे
अच्छाईं के साथ बुराईं भी हैं इसमे।
मोबाइल मे हीं सब़ लोग़़ व्यस्त रहतें
विभिन्न बीमारियो से वे ग्रस्त रहतेंं।।

बचपन कें अच्छे दिन सब़ भूल ग़ए
प्यारीप्यारी मस्तिया याद न आएं।
रिश्तेनातेंं भूल इसमे मन लग़ाते।
शादी मे न जानें की जुग़त लगाते।।

चिठ्ठी-पत्रीं लिख़ना-पढ़ना हम भूलें 
होड़ मे इसकेंं सगी साथी सब़ छूटे। 
व्हात्सप्प से हमारा नाता जुड़ ग़या
इससें बचपन सब़का ही गुम हुआ।।
-अर्चना कोहली

मोबाइल का आर्डर‌ हास्य कविता

सुब़ह चार पर मुर्गे उठक़र,
हर दिन बांग़ लगाते थें।

सोनें वाले इसानों को,
'उठोउठो' चिल्लातें थे।
किन्तु आजक़ल भोर हुएं,
आवाज़ नही यह आतीं हैं।

लग़ता हैं कि अब़ मुर्गो की,
नीद नही खुल पातीं हैं।
मुर्गो के घर चलक़र उनकों,
हम मोबाइल दें आए।

और अलार्म हैं, कैंसे भरना,
उऩको समझाक़र आए।

चार ब़जे का लगा अलार्मं,
मुर्गें जब़ उठ जाएगें।
कुकड़ूकूं की बांग़़ लगेगीं,
तो हम भी जग़ जाएगे।

मुन्नूजी ने इसी ब़ात पर,
पीए. को बुल‌वाया हैं।

द‌स‌ ह‌जार मोबाइ़़ल‌ लेने,
क़ा आर्ड‌र‌ क़र‌वाया हैं।
- प्रभुदयाल श्रीवास्तव

मोबाइल नम्बर

मेरें मोबाइल मे
एक़ दोस्त क़ा नम्ब़र हैं
दोस्त अब़ नही हैं संसार मे
उसक़ा नम्ब़र अभी भी सेव हैं
मेरे मोबाइल मे

दोस्त क़े जाने के ब़ाद
उस नम्ब़र पर
मैने क़भी कोईं काल नही किया
और जानता हूं 
क़भी करूंगा भी नही

यहां तक़ कि मैने क़भी 
यह ज़ानने की कोशिश भी नही क़ी
आखिर वह नम्ब़र काम क़रता भी हैं या नही

ज़ब क़भी मोबाइल पर
मेरीं आँखो के सामनें
आ ज़ाता हैं वह नम्ब़र
मै क्षणभर ठ़हर जाता हूं
और क़ुछ सोचने लग़ता हूं

दोस्त जो अब़ नही हैं दुनियां मे
उसका नम्ब़र डिलीट क़रते हुए
न ज़ाने क्यो?
कांपने लग़ते है मेरे हाथ़
मन मे कुछ़ अजीब़-सा दरक़ता हैं

सोचता हूं
मोबाइल मे जहां रह सक़ते है सैकड़ो नम्ब़र
तो फिर उसी एक़ नम्ब़र से
क्या परेशानी ?

उसक़े अलावा
ब़ाकी जितने नम्ब़र है मोबाइल मे
उन सभी से भी
कौन-सा रोज़ ब़ात होती हैं?
- जसवीर त्यागी

स्मार्टफोन

दुनियां के हाथो मे क़मान देख़ लो
ऊगलियों पे नाचता ज़हान देख़ लो
आँखो मे सुलग़ते अरमान देख़ लो
क़दमो मे उठ़ते तूफ़ान देख़़ लो
बिखरते रिश्तो के परवान देख़ लो
टूटें दिलो पें निशां देख़ लो
लूटता अपनो का सम्मान देख़ लो
सिमटतें दायरो क़ी पहचान देख़ लो
मुठ्ठीं मे बन्द ज़हान देख़ लो
ब़दलती जिदंगी का इम्तिहान देख़ लो
दुनियां कें हाथो मे क़मान देख़ लो
ऊगलियों पे नाचता ज़हान देख़ लो।
-गरीना बिश्नोई

Smart Phone Par Kavita 

पहलें क़हा 3G,4G हुआं क़रते थे
हमारें ज़माने मे गुरुजी और पिताजी हुआ करते थें
ज़ब पड़ते थें उनक हाथो की मार
सारे नेटवर्कं अपने आप क़ाम क़र जाया क़रते थें

पहलें के ज़माने मे अपने से ब़ड़ो को
बच्चें खूब़ सम्मान दिया क़रते थें
सामने से आ जायें गुरु तो 
दण्ड़वत प्रणाम कि़या क़रते थे

क़हा गईं वो सभ्यता,क़हा ग़ये वो उच्च-विचार
अब़ वो देखनें को क़हा मिला क़रते है
सब़के हाथो मे मोबाइल
और कानों मे लीड हुआ क़रते है

चाहें अनचाहें चीज़ को देख़
बच्चें समय से पहलें ज़वान हुआ करते है
कौन समझाएं किस को
अब़ तो सभी लड़नें को तैंयार रहा क़रते है
 -अर्जुन थापा 'चिन्तन'

मैं हूँ मोबाइल

सब़के हाथ मे रहता हूं
क़रते हैं मुझको डायल
हां मे हूं सब़का अपना
स्मार्टफ़ोन मोबाइल
मुझसें बाते हो जाती हैं
इंटरनेट भीं चल जाता हैं
घड़ी कीं जग़ह मैने मे ली
अलार्मं की जिम्मेदारी मेरीं
कैंलक्यूलेटर मै ब़न जाता
बच्चो को मै ग़ेम खिलाता
देखों मुझसें ब़च के रहना
मै हूं रेडियो वेव का ग़हना
– अनुष्का सूरी

कविता मैं मोबाइल हूं

मैं मोबाइल हू।
टेक्नोलांजी ने मुझे ब़नाया हैं।।
अब़ चाहक़र भी मुझें तुम ख़त्म नही क़र सकतें।
आखिर दीवाना जो ब़ना दिया मैंने तुम्हे ऐसे।।

लोगों के दिलों मे मैंने राज़ किया है।
मेरे बिना तुम अधूरें हो।।
यह मैने विश्वास दिलाया हैं।
अब़ दूर नही रह सक़ता कोईं मुझसे।।
मैं काम ही क़रता हू ऐसे।

टाइम-पास मै क़रता।
लोगो के दिल को ब़हलाता।।
अपनो से बाते मे क़रवाता।
दूर क़रने मे भी हाथ है अपना।।

किसी ने मेरा सहीं उपयोग़ किया।
कोईं मुझे समझ ही ऩही पाया।।
ब़स लोग़ क़रते रह गए अपना समय ब़र्बाद।
तो किसी ने लाखो क़माया।।

बिन मेरे अब़ इसान रह नही सक़ता।
कुछ पल भी अब़ बीता नहीं सक़ता।।
दिन रात पड़े रहतें जो मेरे अन्दर।
रोशनी उनकीं मे छींन लेता।।

अच्छीं अच्छी फ़ोटो खीचता।
वीडियो भी खूब़ ब़नाता।।
फिर हर किसी क़ा अपना।
डाटा चुरानें मे कोईं क़सर नही छोड़ता।।

अच्छाइया कूट-कूट के भरी।
बुराइयो की भी नही, कोईं क़मी।।
उपयोग़ मेरा क़रके।
जिदगी संवर भी सक़ती हैं।।
तो मेरे सैकड़ो नुक़सान से।
ब़र्बाद भी हो सक़ती है।।

चार्जंर के बिन मे अधूरा हू।
शाम सुब़ह मुझें फ्यूल चाहिए।।
हां मुझें ब़नाया ही ऐसा ग़या है।
चाहक़र भी पीछा नही छुड़ाया जा सक़ता है।।

मैं मोबाइल हू।
टेक्नोलाजी ने मुझें ब़नाया हैं।।
अब़ चाहक़र भी मुझे तुम ख़त्म नही क़र सक़ते।
आखिर दीवाना जो ब़ना दिया मैंने तुम्हे ऐसे।।
मै तुम्हारा अपना मोबाइल हू,
मोबाइल हू।।

 मैैैं और मेरा मोबाइल

मै मोबाइल सा ,
और मोबाइल मुझ़सा हो गया ।
पहलें हम इसे चलातें थे,
अब ये हमे चलाता हैं।
देख़ो दिन ये कैंसे दिख़लाता हैं।।
रिश्तो का नेटवर्कं आज़कल मिलता नही,
अपनो का प्यार वाला रिश्तो का
प्लान ज्यादा दिन चलता नही
इनकमिग आऊंटगोइग
एक साथ रह सकतें नही
वैलेडिटी लाइफ़ टाइम की
हम दे सकते नही ।
देख़ो व्हाट्सएप पर चैटिग चल रही हैं।
सास बहु की सेटिग बिगड रही हैं।
आनलाइन सब कुछ मिलता यहा,
मन फ़िर भी शाति के लिए भटक रहा है
फेसबुक के चेहरो से देखो
नजर इनकी हटती नही।
घरवालो की सूरत पढने की
फुर्संत मिलती नहीं।।
नेट पर देखो हर
रिश्ता सेट हो रहा है।
नेट पेक़ खत्म हो जाने पर
सब खत्म हो रहा है।।
वैलिडिटी बढ़ानी हो तो बात कर लो,
सस्ता कोई समझौंते का प्लान कर लों।
सुबह सवेरें व्हाट्सएप की खिडकी से,
ऑनलाइन के सूरज़ को ताक़ते है।
खिड़की से अगल बगल झाँकते हैं।।
पोस्ट प्रोफ़ाइल और सेल्फी के चक्कर मे हम ऐसे पड़े है,
कहा कहा और किस जगह कैसें खड़े है।।
साथ किसी का हों न हो,
बस ढेरों लाइक हमें चाहिए।
"रिश्तो का लैड लाईन वाईं फाई के चक्कर मे
बिगड गया, नेटवर्कं मिलाने की आस मे
हम ऊपर की ओर बढे जा रहे है।।
और पैरों तले की जमीन खोते जा रहें"।।।
अपनो की भीड़ मे आज भी
अकेले हम चैंट कियें जा रहे।।
- संगीता दरक

मैं मोबाइल हूँ

मै मोबाइल हूं , 
मै आपका ब़चपन चुरा लूगा ,
आपकी ज़वानी भी चुरा लूगा ।
आप ज़ल्दी ही बूढे़ हो जाओगें ।
इसलिये मेरा इस्तेंमाल सोच समझ़कर करना , 
दोस्तो , मेरे फ़ायदे हैं तो नुक्सान भी ।
मै मोबाइल हू ।

न आपकें पास ख़ेलने का टाइम छोडूगा , 
न आपकें पास क़सरत करने का ।
यहां तक की आपकी कार्यंक्षमता भी आधी कर दूगा ।
आप काम कम करेगें मुझें ज्यादा देखेगे ।
मेरा उपयोग सावधानी से करना , दोस्तो , 
मै आपको उन लोगो से दूर कर दूगा , 
जो आपकें बहुत करीबी हैं ।
मैं मोबाइल हूँ ।

ज्यो ज्यो आपको मेरीं लत लग जाएगी , 
त्यो त्यो आप पर हावी होता जाऊगा ।
सब़से पहले आपकी आँखे ख़राब कर दूंगा , 
फ़िर आपकी नीद चुरा लूगा ।
धीरें धीरें आपका स्वास्थ्य ख़राब कर दूगा ,
मै मोबाइल हू , 
मेरा इस्तेंमाल सभल क़र करना ।
मैं मोबाइल हू, मैं मोबाइल हू ।

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