Short Poem In Hindi Kavita

चंदा मामा पर कविताएँ Chanda Mama Poem In Hindi

चन्द्रमा पर कविताएँ Chanda Mama Poem In Hindi- नमस्कार दोस्तों आज हम चंद्रमा यानी चंदा मामा पर कविताएँ लेकर आए है. चन्द्रमा पर कविताए छोटे बच्चो के लिए यहाँ प्रस्तुत की गई है.

चंदामामा यानी चन्द्रमा जो रात के समय में हमें रोशनी देता है. ये पृथ्वी का प्राकृतिक उपग्रह भी है. चन्द्रमा अपना आकर बदलता रहता है. कभी बड़ा कभी छोटा कभी गोल तो कभी अर्द्धगोल बन जाता है.

चन्द्रमा को बच्चे चंदामामा कहते है. अज हम चन्द्रमा पर कुछ कविताएँ प्रस्तुत करेंगे, जो 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 के विद्यार्थियो के लिए मनोरंजनभरी कविताएँ है.

चंदा मामा पर कविताएँ Chanda Mama Poem In Hindi


चंदा मामा पर कविताएँ Chanda Mama Poem In Hindi

चंदा पर बस्ती


चंदा मामा धरती पर
बस्ती नई बसाने
किसे किसे चलना है बोलो
मिलकर मौज मनाने

शेर सिंह का सुन सवाल
भालू जी पहले आए
बोले मन करता जाकर
चंदा पर नांच दिखाएं

फिर लोमड़ी उछलकर बोली
ठहरों हम चलते हैं
पर क्या अंगूरों के गुच्छे
वहां खूब फलते हैं

बोला हाथी हमें चाँद पर
जाना है तो माता
देखें हमें कौनसा राकेट
ऊपर ले जा पाता

घोड़ा बोला हम चेतक के
वंशज है जाएगे
एक नया इतिहास वीरता
का हम गढ़ आएँगे

सबने तय पाया चंदा पर
बस्ती नई बसाएं
बड़े मजे से वहां पहुंचकर
मंगल खूब मनाएं

नंगू मामा "रेनू चौहान

चंदा मामा चंदा मामा
मटक मटक कर घूम रहे
क्यूँ न पहनों तुम पाजामा

शरमा कर तब बोले मामा
हर दिन नाप बदलता जाए
पाजामा कैसे पूरा आए

गोरे चंदा


चंदा मामा नभ से उतरो
पास हमारे आओ
इतने गोरे कैसे हो तुम
हमको भी बतलाओ

उस साबुन का नाम बताओ
जिससे तुम नहाते हो
क्रीम कौनसी वह है जिसको
नित ही आप लगाते

खूब नहाता क्रीम लगाता
तुम सा ना हो पाता
तुम्हें देखकर ही मम्मी के
झांसे में आ जाता 

जाड़े में भी प्रतिदिन मम्मी
हमें रगड़ नहलाती
जब भी मैं रोने लगता हूँ
यह कहकर समझाती

मत रो मेरे मुन्ने राजा
तू दम दम दमकेगा
रोज नहाएगा तो तू भी
चंदा सा चमकेगा

चंदा भैया


चंदा भैया सम्भल के सोना
तुम बादल के बिस्तर पर
कहीं नींद में लुढ़क न जाना
तुम धड़ाम से धरती पर
दिनभर घर से गायब रहकर
तारों के संग खेले हो
थककर चूर हुए घर लौटे
नहीं सांझ से पहले हो
ओढ़ रजाई बदली की तुम
सोए सुध बुध खोकर अब
सू सू मत कर देना भैया
रहता मैं हूँ धरती पर

चंदा पर है जाना


माँ मुझको कुछ रूपये दे दो
आरक्षण करवाना,
धरती पर बढ़ गया प्रदूषण
चंदा पर है जाना

शुद्ध हवा होगी चंदा पर
स्वच्छ मिलेगा पानी
चमकीले तारों के मुख से
सुन्नी नई कहानी

काफी शोर यहाँ सड़कों पर
मुश्किल है जी पाना
रूप बदलने का चंदा से
भेद समझ पाऊंगा
मोबाइल पर बात करूंगा
मैं तुमसे रोजाना

उत्सुकता ने जाल बिछाए
मना नहीं तुम करना
चूर चूर होंगे सब सपने
मुश्किल होगी वरना
फास्ट फूड के जैसा बदला
कितना आज जमाना

चाँद पर कविता


हमारे चंदामामा गोल मटोल
जब ये जाते हो जाता शोर
कुछ तो बोल कुछ तो बोल

कल आधे आज क्यों गोल
खुद ही खोल दो अपनी पोल
क्यों कभी आधे और कभी होते हो गोल
रात में आते हो तुम संग में सितारे लाते हो

मगर दिन छिप क्यू जाते हो,
किससे तुम घबराते हो,
क्यू तुम छुप जाते हो कुछ तो बोलो

चंदा मामा आओ ना


चंदा मामा आओ ना
दूध पताशा खिलाओ ना
मुझे मीठी लोरी सुनाओ ना
हलवा पूरी खाओ ना
बिस्तर पर सो जाओ ना

ले जाकर मुझे़ बाद़लों में,
मे़रा मन बह़लाओ ना।
अपने गो़दी के पल़ने में मुझ़को,
झूला़ तुम झु़लाओं ना।

आ़समाँ की दुनिया में,
मुझको तु़म सै़र कराओ ना।
म़स्त पवऩ के झोंको से,
मेरा सि़र सहला़ओं ना।

मे़रे सपने को स़च करने,
चंदा़ मामा आ़ओ ना।
गा़कर लो़री मी़ठी-मीठी,
मुझ़को तुम सुला़ओं ना़।

Moon Poem In Hindi


चंदामामा दूर के
रोज रात में आ जाते है,
पता नहीं है, हमें 
ये दिन में कहा जाता है,

कभी आधे कभी गोल
कभी टेड़े कभी मेढे
तुम तो बहुत चतुर हो,
इतने रूप आप कहा से लाते हो

कभी यहाँ और कभी वहा
कभी दूर चले जाते हो
कभी बदलो में तो कभी अंधारो में खो जाते हो

रात को वापस आते हो,
दिन को कहा तुम जाते हो
क्यू नहीं बतलाते हो,

आसमा की दुनिया का दिनभर सैर करने जाते हो
हवा की झौको से मन मस्तक हो जाते हो

तुम अपना दिल बहलाते हो.
रात को तुम आते हो
दिन को कहा खो जाते हो

चंद्रमा पर कविता


आयी है़ दे़खो अ़म्बर पर,
चंदा की बारात।
ता़रें आये है़ बाराती बऩकर,
देने स़पनों की सौगा़त।

रौश़न है नग़री अम्बऱ़ की,
झिल़मिल क़रते तारों से।
चाँद की दुल्हऩ बनी चंदनिया,
लग़ती है हजा़रों में।

हो़ठों पर लिए मुस्कान,
कु़छ श़रमाई सी, कुछ़ इत़राई है।
ता़रों की जयमाला़ है हाथों में,
कर रहे स़ब मंगलगान।

आज इ़स शुभ़-मु़हर्त का,
साक्षी़ है पू़रा अम्ब़र।
करने स्वाग़त नव जोड़े का,
छा़या ऩभ में अम्बुद का स्व़र।

Chanda Mama Door Ke Hindi Rhyme


चंदा मा़मा दूऱ के, पुए पका़ए बूर के
चंदा मामा दूऱ के, पुए पका़ए बूर के

आप खा़ए थाली़ मे, मुन्ने़ को दे प्याली़ मे
आप़ खाए थाली़ मे, मुन्ने को दे प्याली़ मे
चंदा मामा दू़र के, पुए पकाए़ बूर के
प्याली़ ग़यी टू़ट, मुन्ना गया रूठ 

प्याली ग़यी टूट़, मुन्ना ग़या रूठ
लाएँगे ऩयी प्यालि़या, बजा-बजा़ के तालि़या
लाएँगे ऩयी प्यालि़या, बजा़-बजा़ के तालि़या
मुन्ने को मना़एँगे हम दूध मला़ई खा़एँगे
चंदा़ मामा दूऱ के, पुए़ पकाए़ बूर के

आप खाए थाली़ मे, मुन्ने़ को दे़ प्याली़ मे
चंदा मामा दूर के, पुए पकाए बूर के
उड़नखटोले बै़ठ के मुन्ना चंदा के घ़र जाएगा

उड़नखटोले बैठ़ के मुन्ना़ चंदा के घर जाए़गा
ता़रो के संग़़ आँख मिचौ़ली खेल़ के दिल बह़ला़एगा
खेल़ कूद से जब़ मेरे मुन्ने का दिल़ भर जाएगा
ठुमक-ठु़मक मे़रा मुन्ना वाप़स घ़र को आएगा
चंदा़ मामा दूऱ के, पुए पकाए़ बूर के

हो़ चंदा मा़मा दूर के, पुए पका़ए बू़र के
आप खाए थाली़ मे, मुन्ने को दे़ प्याली़ मे
आप़ खाए थाली़ मे, मुन्ने को दे प्याली़ मे

Poem on Moon Chanda Mama


नील़ ग़ग़न के चंदा़ मामा,
क्यों करते हो तु़म हंगामा.

दूर हमेशा़ रह़ने वाले,
ऊँची़ पेंगे भ़़रने वाले.

पास हमा़रे आ जा़ओ तु़म,
हमसे़ आँख चु़राओ न तु़म.

रोज़-रोज़ मैं तु़म्हे बुला़ता,
या़द तेरी ले़कर सो जाता.

बात हमा़री क़भी न मा़नी,
करते ऱहे अपनी मनमा़नी.

मा़नव तुम़ तक पहुँच़ गया है,
राज़़ तुम्हारा स़मझ गया है़.

खोज़ लिया है़ तुम पर पा़नी,
बतला़ती है़ मेरी ना़नी.

मैं भी़ ए़क दिन आ़ऊंगा,
तुमसे़ हा़थ मिला़ऊंगा.

हिंदी कविता चन्दा मामा


चंदा मामा, आ जाना, साथ मुझे कल ले जाना
कल से मेरी छुट्टी है ना आये तो कुट्टी है।

चंदा मामा खाते लड्डू, आसमान की थाली में
लेकिन वे पीते हैं पानी, आकर मेरी प्याली में।

चंदा देता हमें चाँदनी, सूरज देता धूप
मेरी अम्मा मुझे पिलातीं, बना टमाटर सूप।

थपकी दे-दे कर जब अम्मा, मुझे सुलाती रात में
सो जाता चंदा मामा से, करता-करता बात मैं।

Chanda mama Kavita


आस़मान में चंदा़ मामा़,
ह़ऱदम हंस़ते रहते हो,
क्या़ नाना़ के ड़र से माँ,

लु़कते-छि़पते रहते हो,
क्यों होते हो बड़े छो़टे,
क्यों कभी दिखाई ना़ देते,
है़ इस़़का क्या़ राज बता़ओ,
ज्ञाऩ अदभु़त हम़को करवाओ।

Chanda Mama Poem


नील ग़ग़न के चंदा़ मामा़,
क्यों करते हो़ तु़म हंगा़मा.

दूर हमे़शा रह़़ने वाले,
ऊँची़ पेंगे भ़रने वाले.

पास़ हमा़रे आ जा़ओ तु़म,
हमसे़ आँख चु़राओ न तुम़.

रो़ज-रोज़़ मैं तुम्हे़ बुला़ता,
याद ते़री ले़कर सो़ जाता.

बा़त हमा़री क़़भी न मा़नी़,
करते़ रहे़ अप़नी मऩमानी.

माऩव तु़म तक पहुँच ग़़या है़,
राज़ तु़म्हारा स़मझ ग़या है़.

खो़ज लिया है़ तुम़ पर पानी़,
बतला़ती है़ मे़री नानी़.

मैं भी़ एक दि़न आऊंगा,
तुम़से हा़थ मिला़ऊंगा.

चंदामामा कविता


रात का ज़ब है घऩघोर सा़या
तब़ आका़श़ में चाँद जग़मगा़या
टि़मटिमा़ते ता़रों के आँग़़न में

गो़ल च़कोर मऩ को भा़या
चाँद की़ शीत़ल़ चांदनी़ ने
द़बी आ़काँक्षा़ओं को जगा़या

चाँद़ क़हता है़ सबसे़ रोज़
इंसा़न तू़ हा़र से क्यों घ़ब़राया
दे़ख मु़झे मे़रे दाग़़ देख

मुझ़ पर बहु़तों ने आरो़प लगा़या
मैं निड़र सफ़े़द चा़द़र ओ़ढ़
आज फि़र दोबारा यहीं आ़या

चांद पर कविताएं : आओ चांद से बातें करें

पूरें चांद की आधीं रात मे
एक मधुर कविता 
पूरें मन से बनें 
हमारे अधूरें रिश्तें के नाम लिख़ रही हू
चांद के चमकीलें ऊजास मे 
सर्दींली रात मे
तुम्हारें साथ मै नही हू लेकिन 

रेशमीं स्मृतियो की झ़ालर 
पलको के किनारें पर झ़ूल रही हैं 
और आकुल आग्रह लिये 
तुम्हारी एक क़ोमल याद 
मेरें दिल मे चूभ रही हैं.. 

चांद का सौंन्दर्य 
मेरी कत्थईं आंखो मे सिमट आया हैं
और तुम्हारा प्यार 
मन का सितार बन क़र झनझ़नाया है 
चांद के साथ मेरें कमरें मे उतर आया हैं...

क़ल पिघल‍ती चांदनी मे 
देख़कर अकेली मुझ़को 
तुम्हारा प्यार
चलकर मेरें पास आया था 
चांद बहुत ख़िल गया था। 

आज़ बिख़रती चांदनी मे 
रूलाक़र अकेली मुझ़को 
तुम्हारी बेवफ़ाई 
चलकर मेरें पास आईं है 
चांद पर बेबसी छाईं है। 
 
क़ल मचलती चांदनी मे 
ज़गाकर अकेली मुझ़को 
तुम्हारी याद 
चलकर मेरें पास आयेगी 
चांद पर मेरी उदासी छा जायेगी।

शरद की 
बादामीं रात में 
नितात अकेली 
मै 
चांद देख़ा करती हू
तुम्हारी 
ज़रूरत कहां रह ज़ाती हैं, 


चांद ज़ो होता हैं
मेरें पास 
'तुम-सा' 
पर मेरे साथ 
मुझे देख़ता 
मुझें सुनता 
मेरा चांद
तुम्हारी 
ज़रूरत कहां रह जाती हैं। 
 
ढूढा क़रती हू मै
सितारो को 
लेकिन 
मद्धिम रूप में उनक़ी 
बिसात कहां रह ज़ाती है, 
 
कुछ-कुछ वैसे ही 
जैंसे 
चांद हो जब 
साथ मेरें 
तो तुम्हारी 
ज़रूरत कहां रह जाती है।

शरद की श्वेंत शहद रात्रि मे 
प्रश्नाक़ुल मन 
बहुत उदास 
कहता है मुझ़से 
उठो ना 
चांद से बातें करो, 
चांद पर बाते करों.... 
और मै बहनें लगती हू
नीले आकाश की 
केसरिया चांदनी मे, 

तब तुम ब़हुत याद आतें हो 
अपनी मीठी आंखो से 
शरद-गीत गातें हो...!

शहदींया रातो मे 
दूध धूली चांदनी 
फैंलती है 
तब 
अक्सर पुक़ारता हैं
मेरा मन 
कि आओं, 
पास बैठो 
चांद पर कुछ बात करे। 

शर्द चांदनी की छाव तलें 
आओं कुछ देर साथ चले।
 
चांद नही कहता 
तब भी मै याद करती तुम्हे
चांद नही सोता 
तब भी मै जागती तुम्हारे लिये 
चांद नही बरसाता अमृत 
तब भी मुझें तो पीना था विष 
चांद नही रोकता मुझें 
सपनों की आकाशगंगा मे विचरने से 
फिर भी मै फ़िरती पागलो की तरह 
तुम्हारे ख्वाबो की रूपहली राह पर। 

चांद ने कभीं नही कहा 
मुझें कुछ करने से 
मगर फिर भी 
रहा हमेंशा साथ 
मेरे पास
बनकर विश्वास। 
यह जानते हुए भी कि 
मैं उसकें सहारें 
और उसके साथ भी
उसके पास भी 
और उसमे खोक़र भी 
याद करती हूं तुम्हें। 
मै और चांद दोनो जानते है कि 
चांद बेवफ़ा नही होता।

तुम, एक कच्चीं रेशम डोर 
तुम, एक झ़ूमता सावन मोर 

तुम, एक घटा ज्यो गर्मीं में गदराईं, 
तुम, चांदनी रात, मेरें आंगन उतर आई 
 
तुम, आकाश का गोरा-गोरा चांद
तुम, नदी का ठंडा-ठंडा बांध 
 
तुम, धरा की गहरी-गहरी बांहे 
तुम, आम की मजरी बिखरी राहे 
 
तुम, पहाड से उतरा नीला-सफ़ेद झरना 
तुम, चांद-डोरी से बंधा मेरे सपनो का पलना 
 
तुम, जैसे नौंतपा पर बरसी नादान बदली 
तुम, जैसे सोलह साल की प्रींत हो पहली-पहली
 
तुम, तपते-तपते ख़ेत मे झरती-झ़रती बूदें, 
तुम, लबी-लंबी जुल्फो में रंगीन-रंगीन फुदे, 
 
तुम, सौधी-सौधी-सी मिट्टी मे शीतल जल की धारा 
तुम, बुझें-बुझें-से द्वार पर ख़िल उठता उजियारा।

देख रहा तुझे

तू सफ़ेद चाँद, उज्ज़वल चाँद रें
लग रहा आसमां का मोती हैं
नन्हा सा मै छत से, देख़ रहा तुझ़े।

बडे चाँद, ओ प्यारें चाँद रे
तेरी परछायी इस पानी मे
नन्हा सा मै छत से, देख़ रहा तुझ़े।

मुझ़े पता हैं तू क़ल फ़िर आयेगा रे
दुआ मेरी हैं कि तू ऐसें ही चमक़ता रहे
नंन्हा सा मै छत से, देख़ रहा तुझ़े।
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